मेलों की बात निराली है
( Melon ki baat nirali hai )
झूले सर्कस सज रही दुकानें नाच रही मतवाली है।
आओ मेला देखन जाए मेलों की बात निराली है।
बिके बांसुरी हाथी घोड़े भांति भांति के खेल खिलौने।
शहरी ग्रामीण सब जन आए लगे नजारे बड़े सलोने।
चाट पकोड़े कुल्फी खाओ खूब पियो ठंडाई आओ।
अलबेलो की धूम मच गई झूम झूमकर सारे गाओ।
छुक छुक चलती रेलगाड़ी कहीं झूला नभ छूता है।
करतब बाज कला दिखाएं सर्कस कहां अछूता है।ं
शेर भालू बंदर चीता सारे वन्य जीव यहां पधारे।
बच्चे बूढ़े नौजवान सब हर्षित हो रहे देख नजारे।
नया जमाना नई फैशन बिके नई-नई हर चीज यहां।
मेलों की रौनक बढ़ जाती उमड़ पड़े जब भीड़ वहां।
देख रोशनी की छटा लगे आई आज दिवाली है।
खरीददारी में मगन हो रहे चेहरों के छाई लाली है।
अपनापन प्रेम फैलाए मेला जन मन उमंग जगाए।
संस्कृति संजोए रखते मेले घर-घर खुशियां लाए।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )