अगर हिंदी का परचम दुनिया में लहराएगा, तभी तो भारत विश्व गुरु कहलायेगा

हिंदी भाषा और मैं

हिंदी भाषा और मैं , एक बहोत ही अच्छा शीर्षक है। विभिन्न लेखक इसको अपने-अपने विचारों के अनुसार विश्लेषित करेंगे किन्तु मेरे बिचारों का आधार इस शीर्षक के लिए राष्ट्रप्रेम तथा हिंदी भाषा के प्रति प्रेम है ।

अर्थात इस शीर्षक में दिए मैं को किसी एक बयक्ति से संभंधित न करते हुए, मैं इसे अपने राष्ट्र जगजननी भारतमाता से संभंधित करना चाहूंगा ।

हिंदी भाषा और भारतमाता परस्पर एक चिर के दो पल्लू है । जो बयक्ति इस  चिर को ओढ़ लेता है , वह इसी के रूप मे ढल जाता है । यह हिंदी भाषा और हिंदुस्ता की भब्यता का उदारहण निम्नलिखित है ।

हिंदी और हिंदुस्तान को जिसने एक बार अपना ठिकाना बनाया वो :–

जो चला गया वो आ गया, जो आ गया वह कभी नहीं गया ।

जो कभी न गया वह बस गया, जो बस गया वह रम गया ।।

किसी भी देश की पहचान वहां की भाषा बोल – चाल और वेशभूषा से होती है अर्थात संस्कृति से होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है और लिपि देवनागरी है। हिंदी भाषा की उत्पति अपभृंश भाषाओँ से है और अपभृंश भाषाओँ की उत्पति प्रकृति से है। जिस प्रकार हिंदी भाषा के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मेरे लिए  सिंविधान का पालन करने की आवश्यकता होती है ।

जिस प्रकार से मुझे मेरे निवासियों की तथा मेरे निवासियों को मेरी जरूरत होती है, उसी प्रकार हिंदी भाषा को संचारको की और हिंदी के संचारको को हिंदी की जरूरत होती है ।

मेरा और हिंदी का संबंध कलम और दवात जैसा है । हम दोनों एक दूसरे के साथ ही चल सकते हैं क्योंकि मेरी मातृभाषा हिंदी है ।

हिंदी और मैं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । हिंदी और हिंदुस्तान की उत्पत्ति एक ही शब्द से मानी जाती है । सिंधी से हिंदी की तथा सिंध से हिन्द की  और हिंद से हिंदुस्तान की उत्पत्ति हुई है।

उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर हिंदी भाषा और हिंदुस्तान को जुड़वा संतानों की संज्ञा दी जा सकती है, क्योंकि हिंदी और मैं एक ही मां की जुड़वा संताने हैं ।

हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है । यह भारत के अलावा भी कई देशों में बोली जाती है । हिंदी भाषा उच्चारण पर आधारित है अर्थात इसे जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है ।

इसी प्रकार जैसा मेरा स्वरूप है,  वैसा ही मेरी प्रतिष्ठा है । हिंदी भाषा इतनी समृद्ध है कि इसे अमेरिकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया ।

इसी प्रकार मेरा अस्तित्व भी विश्व में पारस्परिक रहा है । क्योंकि हिंदी भाषा और मेरे अस्तित्व में समानता है ।

मेरा  सिर गर्व से ऊंचा हो गया था जब स्वामीविवेकानंद जी ने शिकागो में हिंदी में वक्तव्य दिया था । 14 सितंबर पूरे भारत में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है तो मैं गौरवान्वित महसूस करता हूं । क्योंकि :-

अगर हिंदी का परचम दुनिया में लहराएगा,  तभी तो भारत विश्व गुरु कहलायेगा

मैं हिंदी भाषा पर गौरव का अनुभव करता हूं तभी तो मैं आज प्रगतिशील हूं । क्योंकि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने ठीक ही कहा है जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य पर गौरव का अनुभव ना हो उन्नत नहीं हो सकता है । हिंदी से ही मेरी स्वरूप जिंदा है क्योंकि हिंदी ही मेरी संस्कृति की आत्मा है ।

हिंदी के कारण ही तो मैं विश्व पटल  पर अपनी प्रगति गाथा का बखान कर पाता हूं । क्योंकि गांधी जी ने कहा था राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है । हिंदी भाषा ही मेरा जीवन है तथा हिंदी भाषा के द्वारा ही संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है ।

हिंदी भाषा का साहित्य भव्य होने के साथ-साथ मुझसे जुड़ा हुआ है । मेरा और हिंदी भाषा का संबंध नदी और पानी जैसा है । जिस प्रकार नदी का जीवन  नीर से है उसी प्रकार मेरा जीवन हिंदी से है ।

हिंदी भाषा और भारत के संबंध में एक कविता प्रस्तुत है जो निम्नलिखित है:–

तू आरती मैं,  भारती
हम दोनों कारज,  कारती
तू मृग और मैं , मृग चाल हूं
तू गाना और मैं , ताल हूं
तू नृप और मैं हूं,  सारथी
आरती तू मैं,  भारत
तू जीवन और मैं, श्वांस हूं
तू श्लेष मैं , अनुप्रास हूं
तू धरा और मैं,  आस हूं
तेरे मेरे लिए मैं,  खास हूं
तू धारा और मैं, वारथी
आरती तू मैं , भारती
तू पवन और मैं , प्राण हूं
तू धनु और मैं ,  वाण हूं
तू ईश्वर और मैं,  प्रार्थी
आरती तू मैं,  भारती
हम दोनों कारज,  कारती

 

हिंदी भाषा का परचम संपूर्ण विश्व में लहराए यही मेरी जिज्ञासा है । आज भी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता बनी हुई है , क्योंकि मेरे राष्ट में भी हिंदी भाषा को पूर्ण रूप से तवज्जो देने में थोड़ी सी कमी रह गई है । हम सभी देशवासियों की भी जिज्ञासा यही है कि हिंदी भाषा विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करें ।

आओ हम सब मिलकर हिंदी भाषा को विश्व की उत्कृष्ट भाषा का दर्जा दिलाने का प्रयास करें और अपनी आंतरिक बुराइयों को मिटा कर हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार तथा प्रयोग अधिक से अधिक करें ।

जिससे हिंदी भाषा का ही नहीं हमारे हिंदुस्तान का भी परचम दुनिया में लहराएगा तभी तो हिंदुस्तान जग जननी कहलाएगा और हम सब का सपना साकार हो जाएगा ।

वैसे तो भारत में रहने वाले लोग संचार के लिए कई भाषाओं और बोलियों का प्रयोग करते हैं किंतु हिंदी भाषा यहां सर्वमान्य है और मेरा अस्तित्व भी हिंदी से जुड़ा हुआ है । इसलिए हमें  सदैब प्रयासरत रहना चाहिए , क्योंकि विकास कभी रुकता नहीं है ।

अपने मन में ठान लो यारों,  अपना कर्तव्य निभाएंगे

तभी तो हम हिंदी का ही नहीं,  भारत माता का भी परचम लहराएंगे

संदेश :- हरेक  देशवासियों को अपने देश की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देना चाहिए ।

हमारे देश और हिंदी भाषा की समृद्धि और भव्यता इतनी है कि मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूं ।

लिखने को तो मैं भाग्यविधाता और राष्ट्रभाषा के बारे में कितना भी लिख सकता हूं किंतु शब्द सीमा होने के कारण अपनी कलम को यहीं विराम दूंगा ।   *** धन्यवाद ***

 

लेखक : धर्मेंद्र बघेल

(पता ग्राम तोर पोस्ट हस्तिनापुर जिला ग्वालियर मध्य प्रदेश)

सत्यापन पत्र:— मेरे द्वारा स्थापित किया जाता है की उपयुक्त रचना मेरी मौलिक रचना है इसे कहीं से भी चुराया नहीं गया है।

अतः या रचना मेरे द्वारा स्वरचित है।

नाम: धर्मेंद्र बघेल

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