
कर्मफल
***
कर्मफल के आधार पर ही-
लेता प्राणी मानव योनि में जन्म,
बड़े खुशनसीब हैं हम ।
पांच बरस बचपन का बीते,
छह से चौदह किशोरवय हो जीते।
पंद्रह से उन्नीस चढ़े जीवन की तरूणाई,
फिर तो बोझ जीवन बोझ बन बोझिल हुई जाई;
गृहस्थी का भार जो दबे पांव है चली आई।
पहले कदम फूंक फूंक बढ़ाए,
पाप कहीं कोई न हो जाए;
चिंता इसकी घड़ी घड़ी उसे सताए।
इसी ऊहापोह में कर्म अपना मनुज करता जाए,
बात जब लोभ लाभ की आए,
दरस ऊपर का सभी तत्क्षण भूल जाए।
माया मोह में पड़े कभी-
कुछ का कुछ करते जाए ,
नहीं देखे ऊंच नींच,भला बुरा सब भूल जाए।
उम्र जब बीते चालीस,
बात बात पर आए खीस।
स्तर शर्करा का और रक्तचाप बढ़ जाए,
फिर तो भैया इस जगत में उसको कुछ न भाए।
किडनी हृदय रहे न लय में,
मनुष्य जीये हृदयाघात के भय में।
अब बात पाप पुण्य की-
फिर उसके मन मस्तिष्क में आए,
बुढ़ापे में उसे पुनः कर्मफल की चिंता सताए।
सुमिरन करे प्रभु का, मन ही मन पछताए,
लेकिन लेखा कर्मफल का भैया मिट नहीं पाए।
विधाता ने उसे बड़ी ठोंक पीट कर हैं बनाया,
किसी विधि कर्मफल का लेखा-
आजतक कोई मिटा नहीं पाया।
रीति यही सदियों से चलती चली आए,
अपने कर्मफल के आधार पर ही प्राणी-
इस योनि से उस योनि को जाएं।
जानें किस योनि में जाके उसको मुक्ति मिल पाए?
जन्म जन्म के चक्कर से तभी वह छुटकारा पाए।