मेरी सरगोशियाँ | Hindi poetry meri shargoshiyan
मेरी सरगोशियाँ
( Meri shargoshiyan )
मैं मेरे मन के एहसास को संजोकर
उसके प्रेम की अनुभूति को लिखने चला
मेरे ख्यालों में मेरे ख्वाबों में
वो आकर मेरे जज्बातों की अग्नि को प्रदीप्त कर दी
आकर कानों कुछ सरगोशियां की
कितने दीवाने हो तुम मेरे प्यार में
ये तुम्हारा पागलपन है क्यों करते हो इतना प्यार मुझे
तुम्हारे प्रेम की एक अनुभूति ने मुझे बेचैन कर देता है
मेरे अंदर एक प्रेम की नदी बहती है
तेरे एहसासों की लहरों से मन आल्हादित हो उठता है
सागर से मिलने को बेताब होने लगती हुँ
पवित्र पावन निश्छल प्रेम की अनुभूति है मेरा
सोनू!तुम मेरे काव्य की काव्यांजलि हो
मेरे निश्छल प्रेम की अनुभूति से जुड़ी मेरी आत्मा हो
अपने मन की व्यथा,उन्मुक्त मन
तुम्हारे विरह की अग्नि में तप्त हृदय
मन की बेताबी,दिल की धड़कनों के एहसास को
तेरे मेरे प्रेम की एक अनुभूति को
फिर से कविताओं में पिरोने लगा हूँ
मेरी सरगोशियां पर मेरा साथ नहीं देती है
और मैं निःशब्द हो जाता हूँ
सारा का सारा रब नि:सार है
सिर्फ और सिर्फ तेरे एक प्यार की अनिभूति से