Poem in Hindi on Mahaj
Poem in Hindi on Mahaj

महज

( Mahaj ) 

 

महज रख देते हाथ कंधों पे,
दर्द ए पीर सब हवा हो जाती,
ना गम का होता ठिकाना कहीं,
ना हालत कहीं ये बिगड़ पाती।

महज तेरे आ जाने से ही सही,
खुशियां भी मेरे घर चली आई,
खिल उठा दिल का सारा चमन,
मन की बगिया सारी हरसाई।

महज मेरे मुस्कुराने का असर,
तेरे लबों तक भी चला आया,
चांद सा खिला ये हसीं चेहरा,
कह दो ये नूर कहां से पाया।

महज एक मुस्कान ही सही,
मोती प्यार के बरसे तो सही,
तरस गए दीदार को यहां हम,
महताब मेरे निकले तो सही।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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