हिन्दी सजीव भाषा
हिन्दी सजीव भाषा
हिन्दी हमारी मातृभाषा है
हिन्दी हमारी राजभाषा है
हिन्दी से व्यवसाय हमारा
हिन्दी हमारी लोकभाषा है ।
हिन्दी की है छाती चौड़ी
सब भाषा इनके ओर दौड़ी
सभी भाषा के शब्दों को
परिवार जैसे अपनाया है ।
आराम , अफसोस…फारसी है
अमीर , गरीब…. अरबी है
चाय , पटाखा…. चीनी है
तोप , तलाश……तुर्की है
स्कूल, कॉलेज…अंग्रेजी है
आदि शब्दों को समाया है ।
हिन्दी सजीव भाषा है
जिनसे सभी को आशा है
विदेशी भाषा कुहासा है
जो देता सबको झांसा है ।
हिन्दी के बिना वतन अधूरा
हिन्दी है गंगा की धारा
देश , विदेश में फैलती जाती
सबको अपने तरफ खींचते जाती ।
रवीन्द्र कुमार रौशन “रवीन्द्रोम “
भवानीपुर, मधेपुरा, बिहार
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