बढ़ई का इतिहास
बढ़ई का इतिहास
प्राचीन सभ्यता से जुड़ा हुआ है बढ़ई का इतिहास,
कुशल कारीगरी शिल्प-कला है कारपेंटर के पास।
करतें है इनके हृदय भगवान विश्वकर्मा जी निवास,
फर्नीचर के कामों में यह लोग कर रहें है विकास।।
छिल-छिलकर यह काठ को अद्भुत चीजें बना देते,
ना देखा ना सोचा किसी ने मनमोहक रूप दे देते।
दिल में उम्मीद लिए यह लोग अकेले राह ढूंढ लेते,
मुश्किलों से न घबराते सदैव अग्रसर बढ़ते जाते।।
मानसिक व शारीरिक रुप से सभी ये मज़बूत होते,
जीवन सभी का प्रकाशमय हो सच्च राह बतलाते।
अद्भुत काज है इनका यारों भवन द्वार सब बुलाते,
लक्ष्य में इतने खो जातें कि पूरा करके दिखलाते।।
खुले एवम बड़े स्थानों पर होता है इनका वर्कशॉप,
कच्चामाल लाकर बनाते आकर्षक चीजें हर रोज़।
मुख्यतः लकड़ी-प्लाई कील सनमाईका है शामिल,
ग्लास फेविकोल पोलिश से यह करते चकाचौंध।।
ड्राइंग-गणित और लकड़ी का इनको होता है ज्ञान,
२४ सितंबर को राष्ट्रीय बढ़ई दिवस मनाएं जहान।
आरी हथौड़ी चोरसी रंदा बसोला से करते है काम,
इंचटेप हाथ हमेशा रहता एवं पेंसिल रहती कान।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )