हुए हैं किसी के
हुए हैं किसी के
करम जब से हम पर हुए हैं किसी के
मज़े आ रहे हैं हमें ज़िन्दगी के
पड़े हम को मँहगे वो पल दिल्लगी के
फँसे प्यार में हम जो इक अजनबी के
किया उसने दीवाना पल भर में मुझको
हुनर उस पे शायद हैं जादूगरी के
निगाहों से साग़र पिलाने लगे वो
मुक़द्दर जगे आज तशनालबी के
किसी के भी दिल को न मायूस छोड़ा
ज़माने थे अपने भी दरियादिली के
अंधेरे भी घबरा के भागे हुए हैं
क़दम जब से घर में पड़े चाँदनी के
हुई रोज़ जम कर मुहब्बत की बारिश
निखरने लगे रंग प्यासी नदी के
वो परदेस से लौटे जिस वक़्त साग़र
जलाये तभी दीप दीपावली के
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003