हम जिंदा हैं
हम जिंदा हैं

हम जिंदा हैं

 

हम जिंदा हैं

क्योंकि हमारे जिंदा रहने के कारण हैं

 

भले ही हमारी रगों का लहू

सूख चुका है

हमारे कानों तक नहीं पहुंचती

कोई चीख पुकार

ना ही कोई आहो बका

 

हम नदी के कगारों पे

खड़े ठूंठ हैं

 

हम खामोश हैं

क्योंकि हम दर्शक हैं

 

हमें किसी की कातरता

दिखाई नहीं देती

 

ना जाने कितने नाथू आज

देश की अस्मिता लूट रहे हैं

हम खामोश हैं

 

हम खामोश हैं क्योंकि हम भी

उसी भीड़ का हिस्सा हैं

 

मांस नोचने वाले गिद्धों का झुंड

हमारा कुनबा है।

 

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लेखक:-राजीव शुक्ला
महोली, सीतापुर

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