Hum Tumhare Hain Sanam

हम तुम्हारे है सनम

( Hum Tumhare Hain Sanam )

 

मन में कभी तुम ना लाना प्रियवर ऐसा ये विचार,
छोड़ जायेगी हमको ऐसे कर देगी जीवन बेकार।
सात-वचन से बंधकर आयी मैं पतिव्रता यह नार,
साथ रहूॅंगी पूरी उम्रभर मैं भरती हूॅं ऐसी हूॅंकार।।

एक तेरे ही खातिर छोड़ आई हूॅं मैं सारा घर-बार,
गाॅंव-शहर माॅं-बाप भाई-बहन और पूरा परिवार।
सर्वस्व न्यौछावर कर दिया उस वक्त मैंने मेरे यार,
माॅंग भराई किया तुमने मंगलसूत्र पहनाया हार।।

तुम लाख चाहोंगे फिर भी न छोडूंगी मैं तेरा हाथ,
जिस माहौल में तुम रहोंगे रह लेंगे हम तेरे-साथ।
अब है मेरा अस्तित्व तुमसे वो वचन याद है सात,
कही नही जाऊॅंगी छोड़कर याद रखना ये बात।।

आज दौलत के बाज़ार में कई बिखर रहे परिवार,
इंसान होकर इंसानियत को कर रहा ये शर्मसार।
यादें नही बिछड़ती कभी भी बिछड़ जाते है लोग,
रिश्ते निभाऍं सच्चे दिल से नर नारी इस संसार।।

आज साजिश रच रही है दुनिया प्रेम हो रहा कम,
ख़ून-हत्या-बलात्कार-अपहरणों से ऑंखें है नम।
इसीलिए लिखे है कविता थोड़ा दिखाये है ये दम,
इस प्यार में फ़कीर हो गये हम तुम्हारे है सनम।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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