मानवीय संवेदना ख़त्म हो गई!
मानवीय संवेदना ख़त्म हो गई!
हे ईश्वर ! आज तेरे मनुष्यों में,
दयाभाव एवं मनुष्यता न रही।
एक दूसरे के प्रति इन मनुष्यों में,
बस! घृणा व शत्रुता समा रही है।
मानवीय संवेदना ख़त्म हो गई!
हैवानियत, हिंसा खूब बढ़ रही है।
पति पत्नी की हत्या कर रहा है।
आजकल मनुष्य पशु समान है।
चंद पैसे हेतु हत्याएँ भी होती हैं।
आज मनुष्य का, मोल ही न रहा।
ये सोचकर बड़ा ही दुःख होता है।
इस जहाँ में मेरा मानना है कि,
मनुष्य का मन सदा निर्मल हो!
गंगा की भाँति शुद्ध विचार हों!
किसी का दिल दुखाना ही तो,
संसार में अधर्म एवं पाप है।
किसी का दुःख सदा दूर करके,
प्रेम करना मनुष्यता का प्रमाण है।
जिस मनुष्य में इंसानियत नहीं!
वो इंसान कहलाने लायक नहीं,
वह इंसान तो पशु के समान है।
जिस भी मनुष्य में मनुष्यता है,
वो मनुष्य, सज्जन व सुंदर है।
दया-मानवता है परमधर्म हमारा,
जब हम किसी के काम आते हैं,
तो वही हमारी मनुष्यता होती है।
हिन्दुस्तान की वंदनीय नारी शक्ति की बुलंद आवाज़, सामाजिक एकता तथा समानता के प्रतीक
सादर !
देशप्रेमी कविवर श्री ‘सूर्यदीप’
प्रसिद्ध हिन्दी महनीय कवि–साहित्यकार तथा अतीव संवेदनशील समाज–सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता, आध्यात्मिक विचारक, विशिष्ट सम्पादक,भारतीय मानवतावादी, दार्शनिक।
स्थायी पता :- ऐतिहासिक बागपत,
उत्तर प्रदेश, भारत।
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