Dhara par Kavita
Dhara par Kavita

धरा

( Dhara ) 

 

धरा मुस्कुराई गगन मुस्कुराया
खिल गए चेहरे चमन महकाया
रंगों से रोशन हुई ये अवनी सारी
धरती पे खुशियों का मौसम छाया

खेतों में सरसों लहराई पीली
ओढ़ ली धरा ने चुनरिया रंगीली
महका मधुमास मदमाता आया
मस्ती में झूमे समां हरसाया

गुलशन सारे लगे फिर महकने
प्रेम के मोती धरा पर बरसने
गीतों ग़ज़लों ने छेड़े फिर तराने
होठों से आए सुहाने से गाने

जंगल में मंगल मन मयूर नाचे
कुदरत ने भी नव श्रृंगार राचे
धरती हर्ष से फूली ना समाई
होली रंगत नई लेकर आई

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

Hindi Kavita | Hindi Poetry | Hindi Poem -चार लाइनें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here