हुंकार | Hunkar kavita
हुंकार
( Hunkar )
मातृभूमि से ब ढ़कर कोई, बात नही होती हैं।
हम हिन्दू हैं हिन्दू की कोई, जाति नही होती हैं।
संगम तट पर ढूंढ के देखो, छठ पूजा के घाटों पे,
हर हिन्दू में राम मिलेगे,चाहे चौखट या चौबारो पे।
गंगा गाय राम तुलसी बिन, बात नही होती है।
हर चौखट पे ऋद्धि सिद्धि, हरि का आवास वही है।
घंटा और घडियाल बजे,संग शंखनाद की ध्वनि है।
संस्कार का तिलक लगा, भगवा भगवान वही है।
हिन्दू तन और हिन्दू मन का, अब हुंकार प्रबल है।
जाति पंथ को त्याग सनातन,धर्म ही सत्य सबल है।
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कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )