ईमान चाहिए | Iman Chahiye
ईमान चाहिए!
( Iman chahiye )
रहने के लिए सबको मकान चाहिए,
रोजी – रोटी के लिए दुकान चाहिए।
फिसड्डी बनके घर में बैठना ठीक नहीं,
तन मन को भी थोड़ी थकान चाहिए।
तलवा चाटते रहना ये ठीक भी नहीं,
सच पूछिए शिक्षा की उड़ान चाहिए।
एक दिन हमारी साँसों का होगा हिसाब,
साक्षी के तौर पर आसमान चाहिए।
एक राष्ट्र, एक संविधान, एक ध्वज तो है,
बेरोजगारों को नौकरी की खदान चाहिए।
यू.सी.सी. देश के लिए है अत्यावश्यक,
हर किसी का अब इसपे ध्यान चाहिए।
आदमियों से भर गईं हैं बस्तियाँ जरूर,
सच पूछिए बस्तियों में इंसान चाहिए।
सच के आगे झूठ सदा से है हारा,
झूठ को हराने के लिए ईमान चाहिए।
नये- नये बाजार उग रहे हैं खेतों में,
किसानों को खेत – खलिहान चाहिए।
रिश्तों के कितने पेड़ गिर गए हवस में,
पहले जैसा रिश्तों का जहान चाहिए।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई