Khaki par kavita
Khaki par kavita

खाकी मेरी जान‌ इससे ही पहचान 

( Khaki meri jaan‌ isse hi pehchan ) 

 

 

खाकी है मेरी जान और इससे ही मेरी पहचान,

आन-बान एवं मेरी शान इसी से है मेरा ईमान।

पहनकर निकलता हूॅं घर से इसमें है मेरी शान,

जिसका करते है सभी आदर सत्कार-सम्मान।।

 

चाहें भयंकर ऑंधी आऐ या आऐ ऐसा तूफ़ान,

तैयारी में रहता हूॅं आऐ यह कैसे भी व्यवधान।

होली‌-दिवाली व ईद क्रिसमस अथवा रमजान,

नहीं होती है मुझको किसी प्रकार की थकान।।

 

ग़म हो चाहें ‌मुझको हर्ष रहतीं सदा यह तैनात,

धूल भरी ऑंधी चलें अथवा बरसे यह बरसात।

बुनते ही रहते है ख़्वाब पूरे नहीं होते दिन-रात,

दर्द-प्यार छुपाकर रखता दिल में यह जज़्बात।।

 

बेल्ट टोपी सदैव लगाता हूॅं इस खाकी के साथ,

मुस्कुराता व इठलाता रहता सदा ‌गर्व के साथ।

चाहें चोरी या हेरा-फेरी सबका मुझ पे विश्वास,

रात-दिन सुबह-शाम कर्तव्यों से बन्धे मेरे हाथ।।

 

देश के कोने कोने में मिल ही जाएगी यें खाकी,

एक फोन करके देखो भागी आएगी यें खाकी।

रोते- बिलखते चाहें रहें अपनें घर व परिवार ‌के,

सेवा-भक्ति की प्रतीक है मेरी प्रिय यह खाकी।।

 

 

रचनाकार :गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here