इन्द्र का दर्प | Kavita
इन्द्र का दर्प
( Indra ka darp )
इन्द्र…
हाँ ! इन्द्र,
आज फिर क्रूध हो चुका है !
डुबोना चाहता है सारी धरती !
क्योंकि इन्होंने चुनौती दी है,
उसके ऐश्वर्य एवं सत्ता को !
डूबने को हैं
मजदूर, किसान एवं नौजवान ।
दर्द एवं दहशत इतना
कि आवाज भी नहीँ दे पा रहे हैं,
फिर भी
आवाज तो आ रही है
मौत के बाद के सन्नाटे की !
अब कौन धारण करेगा
गोवर्धन पर्वत को ?
और
कौन-कौन टिकाएगा अपनी लकुटी ।
जिससे फिर लौटे खुशियाँ
खेतों – खलिहानों में,
गुजाएं कल कारखाने,
बन्द हो दुश्मन की तोपों के मुँह,
बिखेरे केशर कश्मीर
फिर एक बार ।
*इन्द्र – मौजूदा सरकार
लेखक – आर० डी० यादव
Ex ADCO ( co-operative UTTAR PRADESH )
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