Sawan Kavitt
Sawan Kavitt

सावन कवित्त

( Sawan Kavitt )

 

 सावन मास लगे अति खास, हुलास हिया जब बरसत पानी l

जेठ जरी सगरी वसुधा , सुधा जल पाईके आजु जुड़ानी l

 

बांस पलाश सबै नव पल्लव , पाई धरा फिर से विहसानी l

बदरा गरजे बिजुरी चमके, हियरा हरषे रितु आई सुहानी l

 

ताल तड़ाग नदी नव-राग में , झील प्रपात लगे घहराने l

ठंड समीर बहे धीर-धीर , अधीर हिया को लगे सरसाने l

 

घेरे घटा अति शोभित छटा, लोभित काम लगे ललचाने l

विरहिन के मन पीर उठे,तन तीर जब काम लगे बरसाने l

 

मोर भी शोर करे चहुंओर, पिउ पिउ बोलत पपीहा बौराने l

चंद्र को चोर चकोर जस ढुड़े,बूढ़ भयो मानो जबसे हेराने l

 

झेंगुर झुनके टुनके मीन बगुला, दादुर चारिहुं ओर टर्राने l

काग के भाग में राग कहा ,कोकिल कंठ सब जाई समाने l

 

बरसे पनिया धनिया धान रोपे,छोपे पिया जहं खेत झुराने l

देखिके भाव लगाव सजनके,सखियां अखियां लगी मटकाने l

 

भिगत बाल जब गाल को छूये ,चूये हिया पर जाई रिसाने l

छोड़िके धान उतान सखी ,अंचरा पट से झट लागी सुखाने l

 

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कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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बरसे न सवनवा | Barase na savanava | Kajri geet

 

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