इनकार पर | Inkaar Shayari in Hindi
इनकार पर
( Inakaar par )
जो मुकाबिल था सरे बाजार पर।
रो पड़ा वो आपके इनकार पर।
दम जमाने में नही जो मिटा दे,
लिख गया जो इश्क की दीवार पर।
फैसला समझे बिना जब कर लिया,
ऐब अब क्या देखना सरकार पर।
कत्ल जो इतने हुए उनका सबब
तिल बड़ा कातिल खड़ा रुखसार पर।
चांद किस्मत में नहीं तो सब्र कर,
इक चरागे नूर के दीदार पर।
मर्ज देकर के मगर सोचा कहाँ,
गुजरती है शेष क्या बीमार पर।।