फिर कोई तस्वीर | Phir Koi Tasveer
फिर कोई तस्वीर
( Phir Koi Tasveer )
आज सतह -ए- आब पर इक अक्स लहराने लगा
फिर कोई तस्वीर बन कर सामने आने लगा
जब से हम को देखकर इक शख़्स शर्माने लगा
दिल न जाने क्या हमें मफ़्हूम समझाने लगा
खिल उठे हैं जब से मेरे घर के गमलों में गुलाब
मेरे घर के रास्तों पर वो नज़र आने लगा
अपना दीवाना बना कर छोड़ेगा शायद मुझे
गाहे गाहे अपना जलवा मुझको दिखलाने लगा
आज मुद्दत बाद उसने फिर मुझे आवाज़ दी
क्या कोई ग़मगीन लम्हा उसके घर जाने लगा
ज़िन्दगी के आइने पर गर्द सी जमने लगी
मेरा माज़ी भी मेरी नज़रों में धुँधलाने लगा
उसके चेहरे की ऐ साग़र उड़ गई हैं रंगतें
दूसरा कोई मुझे जो पास बिठलाने लगा
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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