इन्तिज़ार से थका लौटकर | Nazm shayari
इन्तिज़ार से थका लौटकर
( Intazaar se thaka lautkar )
इन्तिज़ार से थका लौटकर फिलहाल में आ चूका हूँ
किसीको अनदेखा कर किसीके विशाल में आ चूका हूँ
ये दास्ताँ कभी ख़त्म नहीं होगा और यह कमाल होगा
कई बार ना जाने कितनो के ख्याल में आ चूका हूँ
नया नहीं हूँ में बल्कि नया कर के रखा गया हूँ यहाँ
पहले से बहोत लोगो के इस्तिमाल में आ चूका हूँ
जहाँ से कोई लौट कर आया ना था कभी
वहां से निकलकर कमाल में आ चूका हूँ
यह आसान तो नहीं की लुटा दूँ ज़िन्दगी किसी पर
इसलिए भी ज़िन्दगी के कई सवाल में आ चूका हूँ
सितारों से टूट कर ज़मीन में बिखर रहा है ‘अनंत’
वहीँ से दुबारा जुड़ कर मुक़म्मल में आ चूका हूँ
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
( चितवन, नेपाल )