इन्तिज़ार से थका लौटकर फिलहाल में आ चूका हूँ
इन्तिज़ार से थका लौटकर फिलहाल में आ चूका हूँ

इन्तिज़ार से थका लौटकर 

( Intazaar se thaka lautkar ) 

 

 

इन्तिज़ार से थका लौटकर फिलहाल में आ चूका हूँ

किसीको अनदेखा कर किसीके विशाल में आ चूका हूँ

 

ये दास्ताँ कभी ख़त्म नहीं होगा और यह कमाल होगा

कई बार ना जाने कितनो के ख्याल में आ चूका हूँ

 

नया नहीं हूँ में बल्कि नया कर के रखा गया हूँ यहाँ

पहले से बहोत लोगो के इस्तिमाल में आ चूका हूँ

 

जहाँ से कोई लौट कर आया ना था कभी

वहां से निकलकर कमाल में आ चूका हूँ

 

यह आसान तो नहीं की लुटा दूँ ज़िन्दगी किसी पर

इसलिए भी ज़िन्दगी के कई सवाल में आ चूका हूँ

 

सितारों से टूट कर ज़मीन में बिखर रहा है ‘अनंत’

वहीँ से दुबारा जुड़ कर मुक़म्मल में आ चूका हूँ

 

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शायर: स्वामी ध्यान अनंता

( चितवन, नेपाल )

 

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