इस इश्क़ का | Iss Ishq Ka
इस इश्क़ का
( Iss Ishq Ka )
इस इश्क़ का कोई भी फ़साना तो है नहीं
और गर हो कोई हमको सुनाना तो है नहीं
पैग़ाम मिलता ही नहीं हमको ख़ुशी का यूँ
और ग़म मिले हैं कितने गिनाना तो है नहीं
इस ज़िंदगी ने साथ हमारा नहीं दिया
हम मुफ़लिसों का कोई ठिकाना तो है नहीं
अशआर इस ग़ज़ल के नगीने से कम कहाँ
लेकिन कोई भी इसका दिवाना तो है नहीं
कोई न रहनुमा है कहें अपना हम जिसे
और ज़ीस्त का सफ़र भी सुहाना तो है नहीं
आएँगें आप लौट के सुनते ही ये ख़बर
होशोहवास खोये जताना तो है नहीं
ख़ुद बन सके न वो तो मसीहा भी अपने आप
हमको ख़ुदा भी उनको बनाना तो है नहीं
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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