इतिहास बदल कर रख दूंगा
इतिहास बदल कर रख दूंगा
माना अभी नहीं उछला है,सिक्का मेरी किस्मत का,
पर जिस दिन ये उछलेगा, इतिहास बदल कर रख दूंगा.
पत्थर पर पत्थर लगते हैं,
सपने टूटा करते हैं.
खुद से रोज बिखर जाते हैं,
खुद हीं जुटा करते हैं.
बादल, बिजली, तूफानों को,
झेल – झेल कर बड़े हुए.
काल कर्म की चक्की में,
अक्सर हम कूटा करते हैं.
खायी है सीने पर हमने,चोट हथोड़ी के इतने,
पीड़ दिलों के हर कर के, एहसास बदल कर रख दूंगा.
जिम्मेदारी क्या होती है,
वक़्त से पहले सीख लिया.
मदद किसी ने किया भी तो,
लगता था जैसे भीख दिया.
कई – कई रातें काटी हमने,
जाग – जाग कर आँखों में.
देख -देख इन हालातों को,
हृदयाँगन भी चीख दिया.
पर हिम्मत के घोड़े अपने, रोक सके ना रोकेंगे.
एक – दूजे का साथी बनकर,आस बदलकर रख दूंगा.
विश्वासों की डोरी अपनी,
उस विधना से जोड़ लिया,
मौत की राहें जाते – जाते,
जीत भूमि को मोड़ लिया.
शांत भी रहता कभी तो जानों,
दिल में थे तूफान जगे.
कर्म के पथ पर चलते -चलते,
भाग्य से ऐसा होड़ लिया.
जीत ग्रन्थ जब लिखा जाये,मेरा भी स्थान रहे,
झूम उठे ये दुनियां सारी, रास बदलकर रख दूंगा.

कवि : प्रीतम कुमार झा,
महुआ, वैशाली, बिहार
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