जब दोस्त बने गद्दार
( Jab dost bane gaddar )
जो हमारे अपने हैं करते बैरी सा व्यवहार
क्या कहे किसी से जब दोस्त बने गद्दार
मित्रता का ओढ़कर चोला मन का भेद लेते वो
मुंह आगे आदर करते विपदा से घेर देते वो
उल्टी राय मशवरा देकर उल्टे काम कराते हैं
दोस्ती में दगा दे जाते पग पग हार दिलाते हैं
प्रगति पथ उजियारा उनको तनिक नहीं भाता है
अड़चनें नित नई सखे हमें वही मित्र भिजवाता है
आस्तीन का सांप पालकर जीवन हो जाता दुश्वार
कैसे पहचाने अपनों को हम जब दोस्त बने गद्दार
छल छिद्रों से भरे हुए वो चकाचौंध के कायल है
दगाबाजो से अपनी ये भारत माता भी घायल है
धोखेबाज सत्ता में आए तो सरकारें गिर जाती है
राजनीति षड्यंत्र रच इज्जत भारी गिर जाती है
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )