आरजू जीने के सभी खुशियाँ
( Aarzoo jeene ke sabhi khushiyan )
आरजू जीने के सभी खुशियाँ
मांगती रब से ज़िंदगी खुशियाँ
इसलिये रहती यहां उदासी है
ज़िंदगी में कब है मिली खुशियाँ
ख़त्म होता नहीं रस्ता ग़म का
दूर मुझसे इतनी रही खुशियाँ
आरजू कब न जाने पूरी हो
देखती नज़रें हर गली खुशियाँ
रोज़ मैं तो पुकारता हूँ बस
गैर जीवन से ही बनी खुशियाँ
दे गयी हिज्र ज़ीस्त से ऐसा
बन गयी दिल की बेकली खुशियाँ
ग़म भरी ज़ीस्त बन गयी आज़म
हाँ किसी ने ऐसी छली खुशियाँ