
जख्म है दर्द है तन्हाई है
( Zakhm hai dard hai tanhai hai )
न जाने कब मेरी सुनवाई है।।
रात को चैन से सो लेती है,
मुझसे अच्छी मेरी परछाई है।।
कत्ल करता है मेरी किश्तों में,
मेरा कातिल बहुत कसाई है।।
सांस का शुक्रिया अभी करदूं,
क्या पता कल का नहीं आयी है।।
बस वही लोग बुरा कहते हैं,
जिनके अन्दर बहुत बुराई है।।
तुम समन्दर हो शेष कहने के,
प्यास किसकी भला बुझाई है।।
लेखक: शेषमणि शर्मा”इलाहाबादी”
जमुआ,मेजा , प्रयागराज
( उत्तरप्रदेश )