आओ एक बेहतर कल बनाएं
आओ एक बेहतर कल बनाएं

आओ एक बेहतर कल बनाएं

( Aao ek behtar kal banaye )

समय निकला जा रहा है पल पल,
आओ बनाएं एक बेहतर कल ।
जो हैं दीन हीन,
जिनकी खुशियां गई हैं छीन।
उनके यहां चलें,
ज़माने ने हैं जिन्हें चले।
बांटें दर्द कुछ छांटें अंधियारा,
रौशन कर दें उनका घर गलियारा।
चेहरे पर उनके कुछ खुशियां ले आएं,
आओ एक बेहतर कल बनाएं ।
चलो दुखियों के घर जाएं,
उनके दुःख हर उनको गले लगाएं।
ढ़ाढस बंधाएं, आशाएं जगाएं,
हिम्मत के दो घूंट पिलाएं।
कहें उन्हें न घबराएं,
व्यर्थ न यूं निराश हों-
हम सब आपके साथ हैं!
थोड़ा मुस्कुराएं;
हंसा हंसा कर उन्हें वापस आएं।
आओ एक बेहतर कल बनाएं,
बीमार लाचारों के पास जाएं।
उनके घाव धो आएं,
डाक्टर/दवाओं का प्रबंध कराएं।
बरसों बरस की बीमारी दूर भगाएं,
ताकि वे एक नयी जिंदगी फिर से जी पाएं।
खिलखिलाकर पुनः मुस्कुराएं,
दें हमें ढ़ेरों दुआएं;
आओ एक बेहतर कल बनाएं।
जहां गम गुस्सा बीमारी तकलीफ ना हो,
ऊंच नीच अमीर गरीब का भेद ना हो;
सबकी जुबां पर सिर्फ हां ही हां हो।
चहुंओर बस चहकता महकता घर परिवार मिले,
तो यह दुनिया स्वर्ग से सुन्दर दिखे।

 

 

नवाब मंजूर

लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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