जंग का सुरूर | Jang ka Suroor
जंग का सुरूर
( Jang ka suroor )
हर कोई नशे में चल रहा यारों,
तभी तो ये जग जल रहा यारों।
अश्क में उबल रही पूरी कायनात,
देखो सुख का सूरज ढल रहा यारों।
पिला रहे पिलानेवाले बनकर साक़ी,
क्यों यूएनओ नहीं संभल रहा यारों।
इजराइल,हमास,रूस,यूक्रेन,अमेरिका पे,
रोज जंग का सुरूर चढ़ रहा यारों।
ये पीनेवाले नहीं जानते क्या होगा अंजाम,
बताओ क्या जंग लाइलाज है यारों।
मिसाइल औ रॉकेट से दहल गया गगन,
किसी का नशा नहीं उतर रहा यारों।
खफ़ा हो जाएगी उनपे एकदिन कुदरत,
इस बात को कोई नहीं समझ रहा यारों।
जवां रातों को मिट्टी में वे क्यों मिला रहे,
सोलहवें साल में वो ढल रहा यारों।
स्याह रात है, हर कोई है घबराया,
काँटों की छोड़ो,फूलों से डर रहा यारों।
ये सफर है विकास का, न कि विनाश का,
क्यों कोई लहू से धरती भर रहा यारों?
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)