जय भारत

( Jay Bharat ) 

 

फिर से अलख जगाना होगा
बुझती ज्योत को उठाना होगा
संचार विहीन सुप्त चेतना हुयी
प्राण सुधारस फिर भरना होगा..

छूट रहे हैं सब अपने धरम करम
निज स्वार्थ ही है अब बना मनका
मरी भावना रिश्तों मे अपने पन की
घृणित कर्म नही हो,सनातन का..

हिंदी होकर हिंदू से बांटना ठीक नही
ठोकर मे भी गफलत होना ठीक नही
ब्राम्हण,क्षत्रिय,शुद्र,वैश्य होंगे तब
उलझ उसी मे रहना कुछ ठीक नहीं…

फैली भ्रांतियां ही हमे अलग किए हैं
सत्य समझकर ही हमको दूर किए हैं
गर्व हमे होगा स्वयं के हिंदू होने पर
हिंदुत्व बचेगा अब केवल हिंदू होने पर…

ईर्ष्या द्वेष सभी हमे दूर भगाना होगा
समरसता का भाव हमे जगाना होगा
विश्व धरा पर चाहिए फिर वही सम्मान
स्वर मे एक हमे जय भारत कहना होगा..

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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