जज्बात
( Jazbaat )
मचलते दिल में कुछ अरमान मेरे, जग रही ही अब।
दबा था दिल जो वो प्यास शायद, जग रही ही अब।
तरन्नुम में कहु तो, हाल ए दिल बेचैन है दिलवर,
तुम्ही पे मर मिटू हुंकार ये चाहत, जग रही है अब।
ये रातें नाग बनकर डंस रही है, अब मुझे हर पल।
नरम बिस्तर भी काँटे लग रही है, अब मुझे हर पल।
सुनो जज्बात दिल के राज सारे, कह रही तुम से,
जवानी फांस बनकर चुभ रही है, अब मुझे हर पल।
कहो क्या लाज सारे त्याग तेरे,पास आ जाऊँ।
नदी बन बाध सारे तोड सागर में समा जाऊँ।
तुम्हारा फैसला मंजूर सब, मुझको बता दो बस,
मोहब्बत के भंवर में डूब कर मैं आज मर जाऊँ।
नही ये प्यार कच्चा है, तुम्हारा प्यार सच्चा है।
नही रूसवा करो मुझको,जो ये जज्बात सच्चा है।
तो आके लेके जा मुझको,सुहागन सी सजी दुल्हन,
मै जी लूँ या मरू हुंकार बोलो ना, क्या अच्छा है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )