
जेठ की दुपहरी
( Jeth ki Dupahari )
तू चलना मत छोड़ना,
आगे बढ़ना मत छोड़ना।
सफलता मिले या ना मिले,
पीछे मुड़कर कभी ना देखना।।
तू परेशानियों से ना घबरा,
जेठ की दुपहरी से मत कतरा।
डगमगा मत अपनें पाँवो से,
दौड़ता चल अपनी रफ्तार से।।
तू दौड़ में प्रथम भले ही ना आए,
तू सबको पीछे भले ही ना छोड़े।
तुझे दौड़ में ज़रूर सम्मिलित होना,
गिर जाऐ फिर भी वापस खड़े होना।।
ज़िंदगी में बहुत सारी परीक्षाएं होगी,
अड़चनें और रूकावटे भी कई होगी।
लेकिन याद रखना आज जो आगे है,
वही कल तुझसे पीछे ज़रूर होंगें।।
यही विधि का विधान है,
और मेंहनत वालों की जीत है।
आज हवा इधर से चल रही है,
तो कल हवा उधर से भी ज़रुर चलेगी।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )
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