कान्हा | kaanha
कान्हा
हे ! मेरे कान्हा
तुम कहां बसने लगे
सुना है तु जल में
सुना है तु थल में
तुम नज़र नहीं आते ।
हे ! मेरे कान्हा
सभी तुम को कहते कृष्ण काला
दिल से साफ हो तुम
यह मैं कहता हूं
आप महान हो
इस जग में
तुम नज़र नहीं आते ।
हे ! मेरे कान्हा
तुम कहां हो
मैं ढूंढ रहा हूं
आप को
लोग ढूंढते हैं मन्दिर में
आप सर्वोपरि है
सर्वव्यापी हो
सदगुरु हो
इस जग में
तुम नज़र नहीं आते।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )