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कब तक लड़ोगे
( Kab tak ladoge )
कब तक लड़ोगें
अपनों से,
पूरे दिन
पूरे रात
सम्मान से
जीने के लिए।
तरसते रहेंगे
लड़ते रहेंगे
यूं ही।
कभी जवान तो
कभी नौजवान
कभी महिला तो
कभी किसान,
कसूर क्या है
इन सबका
जो आज
लड़ रही हैं
देश के पहलवान।
नाज था जिन
बेटियों पर
देश को
आज वही
बेटियां
मर रहीं हैं
सह कर
रेप को।
यदि रहा चलता
ऐसे ही
देश में,
आते रहेंगे
लड़ाते रहेंगे
न जाने
किस किस
भेष में,
जी रहे हैं
हम किस ?
और अच्छे
सोंच में,
क्या पता
कल
हम भी
कहीं न आ जाए
किसी ऐसे ही
मुसीबत के
लपेट में।
संभलो!सोंचो!
बंद करो
लड़ना
लड़ाना
जियो और जीने दो,
कब तक
मरोगे
मारोगे
ऐसे ही करोगे,
अपनों से,
पूरे दिन
पूरे रात
सम्मान से
कब तक लड़ोगे।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )