Khafa si Nazar
Khafa si Nazar

ख़फ़ा सी नज़र

( Khafa si nazar )

 

ख़फ़ा ख़फा सी नज़र सनम की बिला वज़ह के अड़ी हुई है
टिकी रहे हर घड़ी हमीं पर नजर नहीं हथकड़ी हुई है।

नहीं लिखा वो लक़ीर में जब भला मुकद्दर बने कहां से
मगर वही दिल कि चाह है बस निगाह उस पर गड़ी हुई है।

थमीं थमीं सी शुरू हुई है ज़रा ज़रा गुफ्तगू हमारी
अभी भला बेसबर हुए क्यूं कहां की जल्दी पड़ी हुई है।

सुनो अभी तो भरा नहीं दिल अभी न जाओ रुको ज़रा तुम
अभी नहीं ठीक से मिले हो कहो कि क्या हड़बड़ी हुई है।

वही मुहब्बत गिला उसी से अज़ब रही दिल की कैफियत भी
हिजाब में दीद की तमन्ना नज़र उसी से लड़ी हुई है।

करो अदा शुक़्र तुम ख़ुदा का चली हुकूमत सदा उसी की
नहीं ख़ुदा की रज़ा से बढ़कर रज़ा किसी की बड़ी हुई है।

नयन नहीं चाहती उलझना तमाम मसले दिवानगी के
अभी नहीं दिल लिया दिया है अभी नहीं गड़बड़ी हुई है।

 

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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