Kabhi Kabhi
Kabhi Kabhi

कभी कभी

( Kabhi kabhi ) 

 

कभी कभी ही होता है दिल बेचैन इतना
कभी कभी ही उठता है ज्वार सागर मे
कभी कभी ही होती है बारिश मूसलाधार
कभी कभी ही आते हैं ख्याल इंतजार मे…

कभी कभी ही चांद निकला है ओट से
कभी कभी ही होता है एहसास गहरा
कभी कभी ही संगीत सी लगती हैं धड़कनें
कभी कभी ही उभर आता है जख्म गहरा

आई हो करीब सकुचाई ही तुम कभी कभी
झुकी हुई पलको मे,मुस्काई हो कभी कभी
छुआ हमने जो बदन आपका कभी कभी
बड़े हौले से ही लजाई हो तुम कभी कभी

आज भी है पास ही एहसास आपका
होती हैं महसूस धड़कनों मे सांसें आपकी
याद है आकर आलिंगन से बंध जाना
याद है सब ,जैसे हो बात कल की ही अभी

सब था,सिर्फ लकीरें ही अपनी नही थीं
थे किस्मत मे और के,गली अपनी नही थी
अब तो बस उम्मीदें ही हैं फिर कभी की
सताती हैं मगर बहुत ,वो यादें भी कभी कभी

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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