स्वप्न | Swapan
स्वप्न
( Swapan )
घरों से दूर होते तो कोई बात न होती
हम तो आज दिलों से ही दूर जा रहे हैं
ललक तो सभी को है कुछ कर गुजरने की
मगर करना है क्या सही,ये ही भूले जा रहे हैं
समझ बैठे हैं खुद को ही ,अफलातून हम
जीत की होड़ मे,बुजुर्ग को छोड़े जा रहे हैं
लीक से हटे हम,नकल से हांथ मिला बैठे
कहां की चाहत मे,जाने कहां बढ़े जा रहे हैं
सरहद के पार से ,उठ रहा है धुआं ही धुंआ
हम काजल लगाए आंख मे सोए जा रहे हैं
सारे हकीकतों से ,दूर की खुदगर्जी है ये
उजाले का स्वप्न लिए ,अंधेरे मे बढ़ रहे हैं
( मुंबई )