कागा के खट्टे मीठे अनुभव

राम नाम

राम मेरे रोम रोम में बसता,
राम मेरे सांस रोमांस में बसता!

आंखों का तारा बन हर पल,
राम मेरी नज़र नूर में बसता!

रक्त धारा बहती रग रग में,
लाल ध्वल नस नस में बसता!

राम रंग रूप स्वरूप मन मूर्त,
स़ूरत बन सलोनी तन में बसता !

मृग नाभि कस्तूरी ढूंढे वन उपवन,
सूंघे घास सुगंध नथुनी में बसता!

बग़ल में छोरा नगर में ढंढोरा,
राम रस धारा जिभ्या में बसता!

गूंज सुनते गगन की मन मगन,
राम स्वर धुन कान में बसता !

राम नाम रट घट भीतर ‘कागा’
कर स्मर्ण चिंतन घट में बसता!

उम्र दराज़

उम्र अस्सी साल बात बेकसी की नहीं करता ,
उम्र अस्सी साल बात बेबसी की नहीं करता!

बच्चपन पच्चपन जवानी चली गई जोश जुनून जल्वा ,
वक़्त का तक़ाज़ा बात रसाकस्सी की नहीं करता!

बदन का हर अंग उज़्वा कमज़ोर बना माज़ूर,
लाठी का सहारा बात ख़ुदकुशी की नहीं करता!

दिमाग़ी तवाज़न तंदरुस्त चुस्त जान पहचान क़ायम दायम,
मिज़ाज नहीं बदला बात कानाफूसी की नहीं करता!

हर दिल अज़ीज़ हिम्मत ह़ोस़ला बुलंद मेरा मस्त,
हमले हुए हज़ार बात जफ़ाकशी की नहीं करता!

आज नहीं तो कल चले जाना होगा ‘कागा’
दुनिया का दस्तूर बात बेवक़ूफ़ी की नहीं करता!

दोहरा चरित्र

पीठ में ख़ंजर घौंपा जा रहा है,
जलादों को जबरन सौंपा जा रहा हैं!

चरित्र चंगा जिनका होती उनकी अग्नि परीक्षा ,
तानाशाही त़ोर तरीक़े से होती अग्नि परीक्षा!

ह़क़ हड़प रहे ह़क़दार का हुकमरान ह़क़ीक़ी ,
भरोसा नहीं पराये पर नादान निकले नज़दीक़ी !

आमने सामने करते चिकनी चुपड़ी मीठी बातें,
पीठ पीछे खिलाड़ी खेल खेलते कड़वी बातें !

निशाना चूक नहीं जाये कुचल करते क़तल ,
पैरों तले रौंद देते बेरह़म करते क़तल!

स़दियों से सताते रहे सितमगर कर सितम ,
जी भरा नहीं बरक़रार सिलसला नहीं ख़तम!

भेड़िये भेड़ो के झुंड में कर घुसपेठ ,
करते अपना शिकार आसानी से कर घुसपेठ!

फूट डालो राज करो पुरानी परम्परा चालू ,
दयालू कोई नही बंदा सबका स्वभाव ईर्ष्यालू !

‘कागा’ का़ज़ी नहीं सुनता फ़रियाद करता पक्षपात,
चोर लुटेरे मोसेरे भाई देते तक़लीफ़ आघात !

पुरूष प्रधान

आधी आबादी औरतें फिर भी पुरूष प्रधान देश,
शिक्षा ज्ञान विज्ञान फिर भी कृषि प्रधान देश !

आवश्यक्ता आविष्कार की जननी साईन्स के दौर में ,
चांद मंगल पर पहुंच चुके आधुनिक दौर में!

अंध-विश्वास पाखंड आडम्बर ढौंग पोंगा पंथी परम्परा ,
तकनीकी का नया युग आया छोड़ो पुरानी परम्परा!

रोबोट करता काम कृषि कारख़ानों में तुरंत फुर्त, ,
आती नहीं कोई कोताही होता आसान चुस्त दुरस्त !

जय जवान जय किसान मज़दूर राजनीति रंगीन संगीन ,
एवज़ी चुनाव करो कोई ग़ैर-बराबरी नहीं ग़मगीन !

जनता जागी पंद्रह अगस्त को हुआ भारत आज़ाद ,
अपना खेत खलियान धन दोलत देश हुआ आबाद!

छब्बीस जनवरी संविधान लागू गण तंत्र दिवस मनाया,
तिरंगा फहराया राष्ट्र गान गाया नया माचित्र बनाया!

‘कागा’ जाति धर्म से क्या लेना देना ख़ुदारा ,
संविधान की शपथ ग्रहण करो ख़बरदार ख़ुश ख़ुदारा !

असमानता

मानवता मर चुकी मानव ज़िंदा है ,
संवेदना सिसक रही मानव ज़िंदा है!

बहिन बेटियों की अस्मत लूटी जाती,
देहज की मार मानव ज़िंदा है!

ऊंच नीच की आग बुझती नहीं ,
रोज़ कत़्ल क़त़ार मानव ज़िंदा है!

चंदा चढ़ावा चढ़ता बेशुमार करोड़ों का ,
भूखा प्यासा बेज़ार मानव ज़िंदा है!

धर्म जाति का बेह़द बोल बाला ,
नफ़रत गर्म बज़ार मानव ज़िंदा है !

अमीर ग़रीब की खाई मिटती नहीं,
बढ़ती रहती दरार मानव ज़िंदा है !

स्त्री पुरूष किन्नर मानव प्राणी ‘कागा’
नहीं समान व्यवहार मानव ज़िंदा है!

विधि का विधान

बड़ों को बड़ी पीड़ा छोटों को छोटी,
अमीर को हल्वा पूरी ग़रीब को रोटी!

सूरज चांद को होता ग्रहण तारे मुक्त ,
नदियों में जल अमृत समुंद्र नमक युक्त!

धरा पर फेरी हरी घास सुहानी लगती ,
चरते पशु चाव से सूखी अटपटी लगती!

हाथी कान हिलाता रहता चींटी का डर ,
कुत्ते भौंकते रहते हाथी को नहीं डर!

मखियां भिन-भिनती ज़ख़्म के मवाद पर ,
मधु चूस फूल रस उड़ती स्वाद पर !

जब आता भूचाल बर्बाद हो जाती बस्तियां ,
जब घमंड आता ख़त्म हो जाती हस्तियां !

हवा के हल्के झौंके पर उड़ते तिनके,
बड़े दरख़्त त़ूफा़न से तबाह बनते तिनके !

कीड़ी को कण हाथी को मण रिज़्क़ ,
देता दाता सांप अजगर पंछी को रिज़्क़ !

‘कागा’ बड़ी मछियां गटक जाती छोटी को ,
अमीर खाता कबाब ग़रीब तड़पे रोटी को !

गण तंत्र दिवस

छब्बीस जनवरी गण तंत्र पर्व मिल जुल मनायें ,
गण तंत्र की महिमा निराली मिल जुल मनायें!

भारत का संविधान लागू हुआ स्वतंत्र देश में ,
धर्म निर्पेक्ष धारणा तन मन वचन से मनायें!

गोरों की ग़ुलामी से मुक़्ति मिली सौग़ात सुंदर,
तिरंगा हमारा बुलंद जनता को हार्दिक शुभ कामनायें!

राष्ट्र पति ध्वज फहराये आन बान शान से,
देश के हर कोने में ज़ोरदार जशन मनायें!

राष्ट्र गान गूंजे गगन में ऊंचा स्वर आकाश ,
जय भारत माता की बच्चा बुज़ुर्ग महान बनायें!

सौगंध इस मिट्टी की महक मानवता की ‘कागा’
भारतियों की हर मानव प्राणी को नेक तमनायें !

ओक़ात

अपनी ओक़ात भूल जाते लोग कुछ पाने पर,
अपने ह़ालात भूल जाते लोग कुछ पाने पर!

खाते दर दर की ठोकरें घर नहीं घाट,
अपने जज़्बात भूल जाते लोग कुछ पाने पर !

दाने दाने के मोहताज भीख मांग भरते पेट ,
अपनी बिस़ात़ भूल जाते लोग कुछ पाने पर!

कहां राजा भोज कहां गंगू तेली ग़रीब ग़मगीन,
अपनी वारदात भूल जाते लोग कुछ पाने पर!

रोटी को ढूंढते कचरा बीन कबाड़ में मास़ूम ,
अपनी मुश्किलात भूल जाते लोग कुछ पाने पर!

उतार चढ़ाव आते रहते जीवन में हमेशा ‘कागा’
पराई लात भूल जाते लोग कुछ पाने पर!

राही

उठ जाग राही स़ह़र स़ुबह़ हुआ सवेरा ,
उठ भाग राही स़ह़र स़ुबह हुआ सवेरा!

आंखों में ऊंघ छोड़ खर्राटे करवट बदल ,
हम राही चले गये छट गया अंधेरा !

मंज़िल मुश्किल दूर दराज़ जाना पैदल चल ,
अकेला होगा सफ़र में बीच लफंगा लुटेरा !

गठरी तेरी नज़र आती भारी सामान ज़्यादा,
यह दुनिया नहीं दोस्त जीवन भर बसेरा!

राह आसान नहींं कांटे कंकर टेढ़ी मेढ़ी ,
यह डेरा पराया नहीं तेरा नहीं मेरा!

अस़ल मुक़ाम जाना आज नहीं कल ‘कागा’
किराये का घर कर ख़ाली अजनबी ठहरा !

इंक़लाब

इंक़लाब ख़ून से आयेगा जब खोलेगा,
इंक़लाब जुनून से आयेगा जब डोलेगा!

हाथों में हथकड़ियां पैरों में बेड़ियां,
कौन फ़िरश्ता बन आयेगा जो खोलेगा !

कोशिश ख़ुद को करनी पड़ेगी ख़ुदारा ,
कौन ज़लज़ला बन आयेगा जो डोलेगा!

मर्द मुजाहिद बन नारा कर बुलंद,
कौन मसीह़ा बन आयेगा जो बोलेगा!

हल्का भारी दो पलड़े तराज़ू तोल,
कौन क़ाज़ी बन आयेगा जो तोलेगा!

हा़किम ज़ालिम जद्दो-जहद कर ‘कागा’
कौन ख़ुदा बन आयेगा इंस़ाफ़ मिलेगा !

महा कुम्भ

कुम्भ आते रहते महा कुम्भ आता सालों बाद,
करते जन गण स्नान दान पुन सालों बाद!

जीवन मिला मानव का धर्म कर्म करने का,
करते जीवन अर्पण तर्पण समर्पण कर्म करने का !

जप तप विधि विधान से करते होम हवन,
धूप ध्यान पूजा पाठ आरती आराधना होम हवन!

त्रिवेणी संगम घाट पर लगाते डुबकी जल शीतल,
जाते डूब पाप हरते कष्ट नहाते जल निर्मल!

चोरासी लाख योनियों का होता मोक्ष नीर से ,
कट जाते कष्ट विपति मिलती शांति पीर से !

‘कागा’ पग पग पर करता पाप मानव प्राणी ,
मिल जाती मुक्ति क्षण में पावन होता प्राणी!

खोज बीन

खोज बीन ख़ूब की दूध का धुला कोई नहीं मिला,
छान बीन ख़ूब की दूध का धुला कोई नहीं मिला!

कम्मी हर किसी में होती है नुक़्ता चीनी करने वास्ते,
चांद की चमक दमक चांदनी देखा तो काला दाग़ मिला!

ज़िया-बसतीस का मरीज़ हूं करता परहेज़ मीठी चीज़ों से ,
मदऊ हुआ मह़फ़िल दावत में खाने को रस गुला मिला!

ठहरे पानी में रवानी नहीं उछाला पत्थर एक त़बियत से ,
कीचड़ से लबालब नाला था गंद भरा बदबूदार बुलबुला मिला !

चिराग़ थाम हाथ में ह़सरत ईमान वफ़ा की तलाश करता ,
बेशऊर बेज़मीर बेईमान ग़ैर का मुख़बर ग़लीज़ ग़दार पगला मिला!

जान क़ुर्बान कर अपनी सिर क़लम कराया अपना मान कर ,
जनाज़े को कंधा नहीं दिया बदले बदनामी का स़िला मिला !

जोहरी नहीं मिलता गोहर को परखने वाला क़द्र-दान ‘कागा’
ज़िंदगी में मिला तो कोई ज़ईफ़ बदनस़ीब दबा कुचला मिला !

दिल का राज़

तेरे दिल का राज़ जान सकता नहीं,
तेरे दिल की आवाज़ जान सकता नहीं !

तेरे दिल में केसी हलचल केसी खलबली ,
तेरी उल्फ़त का अंदाज़ जान सकता नहीं!

दिल देकर बदले दिल दिया उधार नहीं ,
तेरे प्यार का आग़ाज़ जान सकता नहीं !

दो दिलों के क़ासिद दोनों नाज़ुक नैन,
तेरे चैन का साज़ जान सकता नहीं !

हम राज़ बन दिल नासाज़ हुआ नादान,
कितने हो फ़िदा नाराज़ जान सकता नहीं !

तेरी चोखट चूम रहा क़ुर्ब से ‘कागा’
क़रीब हो ग़रीब नवाज़ जान सकता नहीं !

प्रकृति


परिवर्तन प्रकृति की परम देन राज़ बदल डालो ,
गीत संगीत गुंजन स्वर लहरी साज़ बदल डालो !

मौसम बदल जाते निश्चित समय पर चक्र चलता,
हाकम ह़क़ पर डाका डाले ताज बदल डालो !

पत्ते पीले पड़ छोड़ देते डाली को अकस़र,
रीति कुरीति बन जाये तो रिवाज बदल डालो !

कोबरा बदल देता केंचुली साल में एक बार,
अपने पराये बन जायें एसा स्वराज बदल डालो !

बहु -रूपिया चेहरे अदल बदल करता मनो-रंजन ,
बीड़ा उठाओ पुराना रूढ़ी वादी समाज बदल डालो !

नशा प्रवृति बाल विवाह ओसर मोसर मृत्यू भोज,
दहेज रोक कर अंध-विश्वास अंदाज़ बदल डालो !

फ़ुज़ुल ख़र्च को छोड़ शिक्षा पर दो ध्यान,
एकता से संघर्ष करो अपना आवाज़ बदल डालो!

हर बाधा का सामना करो बुलंदी से ‘कागा’
हम -दर्द बनो हीन भावना आज बदल डालो !

प्यार

हम तेरे प्यार में पागल हो गये,
हम तेरे प्यार में घायल हो गये!

जब से नज़रें मिली रूबरू दिल बेगाना,
तालीम याफ़्ता दानिश थे जाहिल हो गये!

हम बेबस बेकस बेचैन रोते रहते हरदम ,
तुम चैन से सोते मंह़फ़िल हो गये!

इश्क में अशक़ बहते गिरते रुख़सार पर,
झलक वास्ते पलक भीग दलदल हो गये !

दिल की धड़कन तेज़ सुबक दुबक सोते ,
याद तेरी में अफ़साने ग़ज़ल हो गये !

परवाने बन जलते ख़ून देने वाले मजनू ,
लेलां जेसी शम्मा बन अफ़ज़ल हो गये !

जल भुन जुदाई में काले बने ‘कागा’
ह़सीन आंखों में बस काजल हो गये !

हम हिंदुस्तानी


हम हिंदु भाषा हिंदी हम हिंदुस्तानी,
आन बान शान निराली हम हिंदुस्तानी !

रंग रूप वेष भूषा भाषा अलग ,
अनेक में एक नेक हम हिंदुस्तानी!

काशमीर से कन्या कमारी तक भारत ,
सीमा प्रहरी चाक चौबंद हम हिंदुस्तानी !

खान पान रहन सहन में फ़र्क़ ,
ख़ून खोलता बोलता विवेक हम हिंदुस्तानी!

आबो-हवा नदी नाला पहाड़ पर्वत,
कल कल करते झरने हम हिंदुस्तानी !

नस नस में छलकती रक्त धारा,
संकेत देती सुंदर स़ूरत हम हिंदुस्तानी!

राम राज्य का सपना हमारा सलोना,
सबको सस्ता सुलभ न्याय हम हिंदुस्तानी !

जय जवान जय किसान जय विज्ञान,
जय संविधान नारा प्यारा हम हिंदुस्तानी !

पंद्रह अगस्त छब्बीस जनवरी दो त्यौहार ,
मनाते धूम धाम से हम हिंदुस्तानी !

मुल्क पर मर मिटने वाले परवाने,
बलिदान होने को तैयार हम हिंदुस्तानी !

तिरंगा हमारा जान से प्यारा ‘कागा’
संविधान को करते सलाम हम हिंदुस्तानी

नेतागिरी


वजूद नहीं मगर दावा करते रहबरी का ,
वजूद नहीं मगर दावा करते बराबरी का !

प्यासे को पिलाय नहीं पानी एक प्याला ,
भूखे को भोजन नहीं दिया एक निवाला !

मांगन आया भीख कोई भिखारी घर आंगन, ,
धकेल कर धमकाया भगाया छुड़ाया घर आंगन!

तरस नहीं आया माज़ूर मजबूर मिस्कीन पर ,
बरस पड़ा बेबस बेकस मजबूर मिस्कीन पर !

भूखा भाई बिलखे अन्न दाने को मोह़ताज ,
त़ाना मार करे तकरार सिर सजा ताज !

अपनों से अकड़ पराये पकड़ करे पूजा ,
ज़ोरू का ग़ुलाम बन करे पाठ पूजा !

पंच सरपंच प्रधान प्रमुख विधायक बनता देख ,
मन ललचाने लगा ओरों को बनता देख !

मलाई चाटी चखी भलाई नहीं की कभी ,
ग़रीबों का गली रास्ता नहीं देखा कभी !

जान पहचान नहींं अनजान अजनबी मेहमान बना,
नहींं हुआ दुआ सलाम आदाब मेहमान बना !

वोट लगा मांगने जेसे हो भीख ख़ेरात ,
ख़ाली झोली केसे भरे नहींं मिली सौग़ात!

‘कागा’ प्रेम की भाषा बोलना नहीं आती,
मुख में अकड़ बग़ल में पकड़ी काती!

जनता जनार्दन

जनता नहीं चाहती आपको हम क्या करें ,
अ़वाम नहीं चाहती आपको हम क्या करें!

जब जनता कराह रही थी कष्ट में,
कहां ग़ायब थे ग़ाफ़िल हम क्या करें !

थके मांदे थर्रा रहे थे ग़रीब लोग,
सुनी नहीं फ़रियाद कभी हम क्या करें!

तपती दुपहरी में पसीने से तर बतर ,
ह़ाल नहीं पूछे कभी हम क्या करें !

शीत लहर ठंड में ठिठुर कांपता बदन ,
पूंछे नहीं आंसू आकर हम क्या करें !

चीख़ तड़प चिल्ला कर चुप हो जाते ,
आहें सुनी नहीं अपार हम क्या करें!

जनता है सब कुछ जानती है ‘कागा’
हमदर्द नहीं बने कभी हम क्या करें !

मक्र सक्रांति

मक्र सक्रांति आई क्रांति लाई ,
दान दक्षणा का संदेश लाई!

घर में ख़ुश धणी लुगाई ,
तिल गुड़ युक्त मिठास लाई!

चाचा चाची चुस्त ताऊ ताई ,
बूढ़े बच्चे बुज़ुर्ग बहिन भाई!

अड़ोस पड़ोस रिश्ते नाते जंवाई,
सगे संबंधी सास ससुर सच्चाई ,

सूर्य मक्र राशि शांति छाई,
पतंग उड़े अर्श बहुत ऊंचाई!

दीन को करते दान मिठाई,
मंगल महूर्त होती शादी सगाई !

माघ मास की धूम मचाई ,
कोट कम्बल कपड़े ओढ़ रजाई !

‘कागा ‘करे कलोल ऋतु सुरमाई ,
देश वासियों को बहुत बधाई!

सलूक

गिराने वाले ख़ुद बख़ुद गिर जाते ग़ार में ,
खोदने वाले ख़ुद बख़ुद गिर जाते ग़ार में !

ख़िदमत करने वाले होते ख़ुश ख़ोरम ख़ुद हरदम ,
बुरा चाहने वाले बदनाम गिर जाते ग़ार में!

अपनी अपनों की नज़रों में गिरते ऊंधे मुंह ,
कोई नहीं उठाता ऊंपर गिर जाते ग़ार में !

गिरने पर गिड़-गिड़ाते उठने पर गुर्राते गा़फ़िल,
आवाज़ में तल्ख़ तकरार गिर जाते ग़ार में!

घुटनों बल चल झुक हाथ जोड़ मांगते माफ़ी ,
रोते बिलखते बार बार गिर जाते ग़ार में !

बिना क़लम बही रखे लेखा जोखा स़ाफ़ ‘कागा’
नहीं करते सलाम आदाब गिर जाते ग़ार में !

युवा वर्ग

भारत का भविष्य आज का युवा वर्ग,
भूमि पर निर्माण कर बना देंगे स्वर्ग!

आधुनिक काल विज्ञान का विस्तार जग ज़ाहिर,
उच्च तकनिकी निर्माण कर बना देंगे स्वर्ग !

युवाओं का दिमाग़ चुस्त दुरस्त तेज़ तर्रार ,
इंटरनेट का निर्माण कर बना देंगे स्वर्ग!

दुनिया को मुठ्ठी में क़ेद किया बंद ,
अचूक विज्ञान निर्माण कर बना देंगे स्वर्ग !

देश विदेश में डंका बजता नोजवानों का ,
भरोसे का निर्माण कर बना देंगे स्वर्ग !

चांद मंगल पर क़दम रख चुके ‘कागा’
सपनों का निर्माण कर बना देंगे स्वर्ग !

एकता

एकता में शक्ति भक्ति भावना भरपूर,
एकता में नेकता शांति भावना भरपूर !

खुला हाथ बंद करो मुक्का बनता ,
होता शक्ति का संचार भावना भरपूर!

एक ओर एक मिल होते ग्यारह,
होता भक्ति का भंडार भावना भरपूर !

मानव बंट जाता जाति धर्म में ,
होता दुर्गति का आधार भावना भरपूर !


कुर्जां उड़ती आकाश में झुंड बनाये ,
होता संगति का संसार भावना भरपूर !


मिल जुल जीना जीवन कहता ‘कागा’
होता संयुक्त सुखी परिवार भावना भरपूर !

नफ़रत

नफ़रत नागिन ज़ुबां में ज़हर टपकता रहता है ,
मौक़ा मिलते डस लेती ज़हर टपकता रहता है!

मोह़ब्त कर बंदा अ़दावत की आग बुझा दे ,
नफ़रत की आग का शोला जलता रहता है !

कीचड़ के छींटे होते नहीं स़ाफ़ कीचड़ से ,
लथ-पथ होते गंदगी से झलकता रहता है !

ख़ून धोया नहीं जाता ख़ून से ख़ुदार सुन ,
ह़ास़द ह़सद की आग में झुलसता रहता है!

बराबरी कर नहीं सकता करता बुराई बेवजह बकवास ,
अपने बुने मकड़ जाल में फंसता रहता है !

कम्मियां खोज करता बदनामी आ़दत से मजबूर ‘कागा’
बेचैन बन बहक जाता चापलूस चमकता रहता है !

ज़िंदगी

ज़िंदगी ज़माने में जीना गुलाब से सीखो,
संजीदगी ज़माने में जीना गुलाब से सीखो !

कांटों से चाक़ होते दामन कलियों के ,
देते पाक पहरा जीना गुलाब से सीखो!

कांटों फूलों का प्यार जहां में मिस़ाल,
भंवरों की गुनगुन जीना गुलाब से सीखो !

कांटों के कठघरे में क़ैद महक उठता,
अपनी ख़ुशबू बिखेर जीना गुलाब से सीखो !

शहद मखियों का बसेरा तितलियों का डेरा,
बुलबुल की बग़ावत जीना गुलाब से सीखो ,

कांटे हो जाते ख़ुशबू में मुईत़र ‘कागा’
प्यार का इज़हार जीना गुलाब से सीखो !

समाज सेवा

समाज सेवा में राजनीति का घाल मेल गवारा नहीं ,
राजनीति में समाज सेवा का ताल मेल गवारा नहीं!

समाज सेवा कर समर्पित भाव से बिना लाग लपेट,
राजनीति मे़ समाज सेवा नूरा कुश्ती खेल गवारा नहीं !

एक हाथ में दो लड्डू थाम नहीं सकते साथ ,
राजनीति समाज सेवा गुली डंडा वाला खेल गवारा नहीं!

दो कश्तियों में पैर रख दूसरा किनारा मिलना मुश्किल ,
समाज सुधार राजनीति आग बारूद जेसा मेल गवारा नहीं !

दोगले बन दग़ा बाज़ होना नेक नीति नियत धोखा,
गुमराह कर बद -गुमान तिलों में तेल गवारा नहीं !

रीढ की हड्डी राह पग डंडी की त़रह़ ‘कागा’
तारा तोड़ लाना झूठा वादा रेलम पैल गवारा नहीं

धर्म-जाति

ईश्वर ने मानव बनाया मानवता धर्म बनाया,
इंसान ने हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बनाया!

ईश्वर ने दो जाति बनाई स्त्री पुरूष ,
इंसान ने टुकड़े किये पुरूष महा पुरूष !

ईश्वर ने शरीर को मंदिर बनाया सुंदर,
रूप रस गंध शब्द स्पर्श सुंदर!

तन मन में वीणा घंटा नाद बाजा,
ईश्वर बन बेठा अंदर महान महा राजा!

इंसान ने ईंट पत्थर गारा जोड़ बनाया,
मंदिर मस्जिद चर्च गुरू द्वारा को बनाया !

‘कागा’ बन बेठा इंसान मोल्वी पंडित पूजारी ,
पोप पादरी साधु संत बाबा दाता दरबारी !

बेटा-बेटी

बेटा बेटी दोनों एक समान करो मान सम्मान ,
बेटा बेटी जिस्म और जान करो मान सम्मान !

जब बेटा वारिस कुटम्ब का बेटी पारस मणी,
बेटा वंश वृद्धि बेटी कुल का अंश आयुष्मान!

बेटा तन बदन बेटी मन बुद्धि चित्त चंचल,
बेटा आन बान बेटी कुल की सुंदर शान !

बेटा आंखों का तारा बेटी पुतली पलक पावन,
बेटा घर का प्रहरी बेटी पराई दोलत जान !

बेटा बेटी दोनों जिगर के टुकड़े नाक कान,
बेटा बेटी दोनों होते मान गुमान ईमान अरमान !

बेटा है संस्कार पुरूष बेटी संस्कृती प्रकृति पहचान ,
बेटा भाग्य विधाता वंश का बेटी सौभाग्य सुजान!

बेटा राग बेटी वेराग्य काम अर्थ धर्म मोक्ष ,
बेटा दवा दर्द की बेटी दुआ दिल दयावान!

बेटा बाग़ बग़ीचा बेटी फुलवारी केसर की क्यारी ,
बेटा शब्द गीत बेटी अर्थ संगीत गूंज गान!

बेटा प्रेम बेटी पूजा कोयल करे कलोल ‘कागा’
सज धज चली ससुराल बिन पंख भर उड़ान!

मानव-दानव

जिस मानव में मानवता नहीं वो दानव है,
जिस मानव में महानता नहीं वो दानव है !

स़ूरत मूर्त मानव की अंदर बेठा दानव दूत,
जिस मानव में मधुरता नहीं वो दानव है!

चौरासी लाख योनियों में मानव प्राणी मात्र महान ,
जिस मानव में मरियादा नहीं वो दानव है !

आवा-गमन का एक मार्ग राजा रंक फ़क़ीर,
जिस मानव में मोहब्बत नहीं वो दानव है !

सृष्टि की रचना हुई नर मादा की जोड़ी ,
जिस मानव में महक नहीं वो दानव है !

पृकृति पुरूष का संसार ऊंच नीच नहीं ‘कागा’
जिस मानव में मिठास नहीं वो दानव है!

नया दौर

हो जाओ तैयार अच्छे दिन आने वाले है,
हो जाओ तैयार बुरे दिन जाने वाले है!

कोहरा छाया है आसमान पर धुंध थूंआ जेसे,
बादल छट जायेंगे बारिश दिन आने वाले हैं !

मौसम बदल रहा गर्मी का आंधी तूफ़ान जारी,
चमक रही बिजली सुहाने दिन आने वाले हैं!

मोर नाचे बोले मीठा बोल मोज मस्ती में,
बरसे मेघ मल्हार शुभ दिन आने वाले हैं!

धरती पर छाई हरियाली किसान जोते खेतों हल ,
लहलहाने लगी फ़स़ल मधुर दिन आने वाले है !

रात अंधेरी गुज़र गई स़ुबह़ सवेरा हुआ ‘कागा’
चिड़ियां चहकने लगी सुन्हरे दिन आने वाले हैं!

उठा-पटक

घर बनाने के लिये घर छोड़ना पड़ता है,
कूछ पाने के लिये कुछ छोड़ना पड़ता है!

ज़िंदगी एक सफ़र चलते रहें क़दम दर कदम, ,
रूठा मनाने के लिये नाता जोड़ना पड़ता है !

मत़लबी लोग पैर पकड़ तलवे चाटते नज़र आते ,
भागते को पकड़े वास्ते पीछे दोड़ना पड़ता है !

अपने पराये पेहलू में देख दर्द होता है,
पराया पाने के लिये मुंह मोड़ना पड़ता है!

अपने पराये नहींं होते अगर हो जाये कोई ,
ख़ून का प्यासा तब रिश्ता तोड़ना पड़ता है !

जब बेक़द्र बन बार-बार बेज़ार करे ‘कागा’
बेवजह बदनामी पर अपना सिर फोड़ना पड़ता है!

बुरी नज़र

बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला,
नीच सोच वाले तेरा मुंह काला!

आपके घर मां बहिन बेटी होगी ,
लगता है तेरा घर गड़बड़ वाला!

पराई बहिन बेटियों पर डोरे डालता,
शर्म नहीं आती केसा है मत वाला !

जवानी चली जायेगी हवस के भेड़िये,
नोच लेगा तुमको अंत ऊपर वाला !

नीच सोच छोड़ बन ऊंचा इंसान ,
बन नहीं ह़ेवान बन ऊंचा आला !

इज़्ज़त आबरू अ़स्मत सबको प्यारी ‘कागा’
कर सम्मान अपमान नहीं कर उजाला!

बद नियत

घूंघट औरतें निकाले नियत मर्दों की ख़राब ,
हि़जाब औरतें करें नियत मर्दों की ख़राब!

पर्दे के पीछे कया होता सब जानते,
धड़ले से चलता है शराब कबाब शबाब!

हमाम में सब नंगे सेठ शाहूकार अमीर,
सज धज कर शहज़ादे नज़र आते नवाब !

नर मादा की जोड़ी निहायत अ़जीबो ग़रीब,
मुकमल हो जाते ख़ुश नस़ीब के ख़्वाब !

नज़रें झुक जाती कर दीदार दिलबर का ,
दिल की धड़कनें तेज़ नहीं हिस़ाब किताब!

चरित्र चंगा रख दिल में गंगा ‘कागा’
मालिक के घर पूछा जायेगा सवाल जवाब !

वो और हम

वो चल गये हम देखते रह गये,
वो निकल गये हम देखते रह गये !

उठा दर्द दिल में रोक नहीं सके ,
वो मचल गये हम सोते रह गये!

गठरी बांध गांठ सज धज समान पूरा ,
वो कल गये हम रोते रह गये !

उछले कूदे साथ हंसी ख़ुशी प्यार से ,
वो उछल गये हम सजते रह गये !

चुस्त दुरस्त चाक चौबंद बड़े चालाक थे ,
वो मसल गये हम सोचते रह गये !

साया साथ छोड़ देता अंधेरे में ‘कागा’
वो जल गये हम संंवरते रह गये!

महान हस्ती

राजनीति में वसुंधरा राजे का कोई स़ानी नहीं,
कूटनीति में वसुंधरा राजे का कोई सा़नी नहीं !

‌ क़द्दावर दिग्गज नेताओं की कम्मी नहीं स़ूबे में,
तुलना करना बेकार राजे का कोई स़ानी नहीं !

सूरज के सामने दीपक का नहीं कोई वजूद ,
धूमल होता उजाला राजे का कोई स़ानी नहीं!

क़द पद परम्परा गत मद नहीं लेश मात्र ,
जनता से जुड़ाव राजे का कोई स़ानी नहीं !

दो बार मुख्य मंत्री क़ेंद्र में सक्रिय सेवा,
अमिट छाप छोड़ी राजे का कोई स़ानी नहीं !

वसुंधरा राजे सिंधिया का कोई तोड़ नहीं ‘कागा’
साज़िशें रचें हज़ार राजे का कोई स़ानी नहीं !

वसुंधरा राजे सिंधिया

वसुंधरा राजे का विकल्प नहीं कोई राजस्थान में ,
वसुंधरा राजे जैसा संकल्प नहीं कोई राजस्थान मेंं !

दो बार मुख्य मंत्री बनी राजस्थान की दमदार,
वो दबदबा जोश जल्वा नहीं कोई राजस्थान मेंं,!

जय जय राजस्थान का नारा गूंजा गगन-चुम्बी ,
कानों में आज तक नहीं कोई राजस्थान में!

रोगी था राजस्थान उपचार कर स्वस्थ्य बनाया सबल ,
चमक दमक चौगनी हुई नहीं कोई राजस्थान में !

विकास की गंगा बहने लगी अमृत जल धारा ,
जनता के जज़्बात जागे नहीं कोई राजस्थान मेंं!

राजस्थान के हर कोने में नाम राजे अकेला,
नर नारी बच्चे बुज़ुर्ग नही कोई राजस्थान में !

जहां होता आगमन उमड़ पड़ता जन सेलाब हुजूम,
एसा दुर्लभ दबंग नेता नहीं कोई राजस्थान में!

जनता जनार्दन में ग़मो गु़स़्स़ा भारी भरकम ‘कागा’
बिना राजे राजस्थान अधूरा नहींं कोई राजस्थान में !

नरेंद्र दामोदर दास मोदी

नरेंद्र मोदी जैसा दबंग नेता नहीं दुनिया मे,
देख रह गये दंग नेता नहीं दुनिया में!


स्वच्छ भारत का संकल्प पूरा सौ फ़ी स़दी,
कथनी करनी अंतर समान नेता नहीं दुनिया में !


डिजिटल भारत का निर्माण किया ऊंची सोच बुलंद,
नारी को सम्मान दिया नेता नहीं दुनिया में!


संघर्ष की सीढ़ी पार कर स्वर्णीम शिखर तक,
भारत नाम किया रोशन नेता नहीं दुनिया में !


सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास सुंदर संदेश ,
सशक्त आन बान शान नेता नहींं दुनिया में !


विश्व गुरू का मार्ग प्रशस्त किया जोशीला जुनून ,
सौगंध मातृ -भूमि वचन नेता नहींं दुनिया में !


आत्म निर्भर भारत आर्थिक सुधार का सूत्र पात,
किसान की दुगनी आय नेता नहीं दुनिया में !

-0-
दुनिया के देश करते झुक कर सलाम ‘कागा’
घपला घोटाला सारा बंद नेता नहीं दुनिया में!

जनता जनार्दन नरेंद्र भोदी की दीवानी ,
दुनिया सारी नरेंद्र मोदी की दीवानी!

बच्चा बुज़ुर्ग युवा बोलता मोदी म़ोदी ,
गांव गली हर चौराहा म़ोदी मोदी !

भारत भूमि पर गूंजे मोदी नारा ,
देश विदेश में मोदी मोदी नारा !

गुजरात का मुख्य मंत्री बना महान ,
माडल बना मुल्क में मिस़ाल महान !

जय घोष शासन प्रणाली का ज़ोरदार ,
मोज मस्ती सुख शांति क़ायम मज़ेदार !

प्रधान सेवक लोह पुरूष शक्ति-मान ,
मुल्क में विकास गंगा गति-मान !

अमरीका चीन रूस स्वागत में खड़े,
पड़ोसी ख़ुश ख़ेर मक़दम को खड़े!

‘कागा’ मोदी ह़ाकम की जनता मतवाली ,
दुआ करती दिल से जनता मतवाली !

नरेंद्र मोदी महान

भारत का भविष्य उज्जवल मिला नेता महान ,
दिल का खिला कंवल मिला नेता महान !

आज़ादी के बाद ह़रकत नहीं बरकत नहीं,
नरेंद्र भोली जेसा मज़बूत मिला नेता महान !

तीन सौ सतर धारा हटाई झटके मे़,,
दुम दबा भागे दोगले मिला नेता महान!

दुनिया के देशों में डंका बजा दमदार,
थर्र कांपने लगे आतंकी मिला नेता महान !

माली ह़ालात मज़बूत बने कोई नहीं कंगाल,
ग़रीबी हटाओ नारा ग़ायब मिला नेता महान!

खुद कुशी का ख़ात्मा चेहरे चमक उठे ,
अमनो अमान शांति क़ायम मिला नेता महान! !

रोटी कपड़ा मकान का सपना हुआ पूर्ण ,
आवास अपना ख़ुशी अपार मिला नेता महान !

नहीं खाऊंगा नहीं खाने दूंगा वादा निभाया,
घूस ख़ोर जेलों में मिला नेता महान!

बकवास करने वालों की बोलती बंद ‘कागा’
मज़बूत हाथों में कमान मिला नेता महान !

नशेड़ी

नशा नाश की निशानी बर्बाद करता जोश जवानी ,
नशा नहीं करना कोई बर्बाद करता जोश जवानी !

तन मन धन जोभन बल करे कायर कमज़ोर ,
बस्ती हस्ती मोज मस्ती बर्बाद करता जोश जवानी !

अड़ोस पड़ोस भाई बंधू रिश्ता नाता करते घ्रणा ,
दारू हथकढ़ी चंडाल चोकड़ी बर्बाद करता जोश जवानी !

घर की लुगाई होती परेशान पराई जाई बिचारी ,
घर में दाना ख़तम बर्बाद करता जोश जवानी !

डोडा अमल एमडी चरस गांजा की आदत बुरी ,
क़र्ज़ का क़हर भारी बर्बाद करता जोश जवानी !

मर्द मुर्दा नहीं बन कंचन काया तेरी ‘कागा’
रंग उमंग संग तरंग बर्बाद करता जोश जवानी

युवा पीढ़ी

नये दौर की युवा पीढ़ी नशे में चूर ,
एमडी दारू चरस गांजा डोडा नशे में चूर !

बेरोज़गार इधर उधर भटके रोज़गार की तलाश करती ,
लाचार बेकार बेबस युवा पीढ़ी नशे में चूर !

लुका छुपी अवैध धंधा करती चोरी तस्करी का ,
दारू का कारोबार युवा पीढ़ी नशे में चूर !

दाग़ लगता दामन पर काला पीछा करती पुलिस,
चूहा बिल्ली का खेल युवा पीढ़ी नशे में चूर !

उज्जवल भविष्य को लगा दिया दांव पर अपना ,
लिखा पढ़ा सभ्य समाज युवा पीढ़ी नशे में चूर!

भारत का भविष्य आज का युवा वर्ग ‘कागा’
योजना बनायें हम यादगार युवा पीढ़ी नशे में चूर !

नफ़रत का बोल बाला

नफ़रत की नगरी में घुट घुट कर जीना ,
ग़मों की गगरी में घूंट घूंट कर पीना !

ज़हर अमृत हो चाहे दारू का भरा प्याला ,
ओक से पिलाया जाता चाहे बहायें ख़ून पसीना!

बेआबरू से चुलु भर पानी में मरना बेहत्तर ,
हवस का शिकार होती हीन जाति की ह़सीना !

होंठों से होंठ मिलाये चूमते चूसते चुपके चेहरा,
हट जाता पेहरा उठ जाता पर्दा नहीं ठिकाना !

ऊंच नीच की दीवार खड़ी सदियों से पुरानी,
आंख मिचोनी मेंं गुरेज़ नहीं चूकता नहीं निशाना !

मटकी का पानी पीना मरना मुमकिन देखा गया ,
मंदिर में दाख़िला पर रोक टोक ह़क़ छीना !

लम्बी मूंछ रख कर मरोड़ना मौत का घाट ,
घोड़ी पर बिंदोली निकासी बन जाता अजब अफ़साना !

गर्व से कहो हम हिंदू मुस़ीबतें झेल ‘कागा’
कट्टर एसा कोई नहीं चाहे कोई हो घराना !

चांद की चाहत


चांद की परछाई पानी में देखने से चांद नहीं मिलता ,
आईने में चांद का चेहरा देखने से चांद नहीं मिलता !

कहां राजा भोज कहां गंगू तेली बेचारा मुस़ीबत का मारा,
बिना कश्ती की सवारी किये दरिया का किनारा नहीं हिलता !

बिना ह़ोस़ला अफ़ज़ाई मेहनत किये मंज़िल नहीं मिलती चलना पड़ेगा,
बिना मांगे ख़ेरात मिल जाती बिना मागे सहारा नहीं मिलता!

चांद बड़ा चालाक चांदनी चाहता चकोरी के प्रेम को नहीं,
गर्दन झुके चाहे कट जाये नज़रों का नज़ारा नहीं मिलता!

चांद ज़मीन पर उतार लाने के झूठे इरादे वादे दावे,
मुश्किल नहीं नामुमकिन मालूम होता एक अदद सितारा नहीं मिलता !

मय-ख़ाना मैय्यसर होता साग़र साक़ी नहीं मिलते अकस़र ‘कागा’
नहीं मिलता जन्नत मन्नत करने से जहान दोबारा नहीं मिलता!

अपने-पराये

मुश्किल में साथ नहीं छोड़ते अपने होते हैं ,
मुश्किल में हाथ नहीं छोड़ते अपने होते है!

ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आते रहते है जनाब,
मुस़ीबत में मुंह नहीं मोड़ते अपने होते है !

हवा का रुख़ देख गै़र की गोद में,
आफ़्त पर नाता नहीं तोड़ते अपने होते हैं !

लार टपकती लालच की अपने मत़लब के ख़ात़िर,
परेशानी पर रिश्ता नहीं जोड़ते अपने होते है!

बादलों की गर्जन बिजली की चमक चारों ओर,
बारिश देख मटके नहीं फोड़ते अपने होते है !

भगदड़ अफ़रा तफ़री मच जाये अचानक कोई ‘कागा’
भाग गैरों साथ नहीं दोड़ते अपने होते है!

फ़र्ज़ी-वाड़ा

वो ख़ाक शिफ़ा देंगे हाथों में ज़हर पोटली,
वो खाक शिफ़ा देंगे हाथों में नमक पोटली !

त़बीब बन कर ह़ाज़िर हुए झोला छाप ह़कीम ,
जड़ी बूटी के बदले हाथों में राख पोटली!

चीर फाड़ की चर्चा करते फुंसी नहीं फोड़ा ,
नश्तरों आलों के बदले हाथों में खिलोना पोटली!

नमक की चुटकी भर खड़े ह़ाल चाल पूछने ,
ज़ख़्म छुपा रखना बदले हाथों में दर्द पोटली !

मरीज़ तड़प रहा मूज़ी मर्ज़ में मुब्तिला मायूस,
दवा गोलियों के बदले हाथों में अस़लाह पोटली !

सियस्त के ख़ित़े में अपना रहबर चुन लिया,
बेदर्द सिर दर्द बने हाथों में धोखा पोटली!

सपेरा बन आये ज़हर को चूसने वास्ते ‘कागा’
टोकरी भर सांपों की हायों में खुली पोटली!

अजीबो ग़रीब

दुनिया में बंदा नहीं कोई दूध का धुला ,
पीर फ़क़ीर पंडित नहींं कोई दूध का धुला!

नो माह तक मां के गर्भ में गुज़रे ,
मल मूत्र रक्त लिप्टा नाल से बंधा मिला !

भूख प्यास से बिलबिला रोते हुए जन्म लिया ,
गटक गया दूध मां का चुप चाप चुलबुला !

नहाया नीर से दूध से नहीं नंगा बदन,
बिना सिला पहन लंगोट जो जेसा मिला !

दांत नहीं तब तक पिया दूध चाव से ,
दांत आये खाया पतला दलिया सुगम सुलभ सिलसला !

छट्टी के पोतड़े सूखे नहींं रेंगना शुरू ‘कागा’
बंदा महा पापी नहीं कोई दूध का धुला!

क़िस्स़ा कुरसी का

किस़्स़ा कुरसी का करता मन मुटाव,
ह़िस़्स़ा कुरसी का करता मन मुटाव!

लोक तंत्र की प्रणाली बड़ी लचीली ,
पांच साल बाद होते चालू चुनाव !

नया राजा चुनती प्रजा कर विचार ,
धन बल लालच होता भारी दबाव!

वार्ड पंच सरपंच सदस्य पंचायत समिति ,
ज़िला परिषद विधायक सांसद होता तनाव !

होती बंदर बांट कांट छांट डांट ,
ज़ख़्म बड़े गहरे भरते नहीं घाव !

विकास की गंगा बहती उल्टी धारा,
नाबीन बांटे रेवड़ियां देता अपने स्वभाव !

सत्ता की घोड़ी चढ़ते चाल बाज़,
योग्य से होता हमेशा भेद भाव!

नाथी का बाड़ा बन गई राजनीति,
‘कागा’ क़िस़्स़ा कुरसी का उतार चढ़ाव!

तफ़ावत

अमीर ग़रीब की खाई चौड़ी होती जा रही है ,
दूर क़रीब की खाई चौड़ी होती जा रही है !

समानता का अधिकार दिया संविधान ने जनता को ,
अमल नहीं रत्ती भर मानवता खोती जा रही हैं !

जाति धर्म भेद भाव छूआ -छूत का बोल बाला,
ऊंच नीच से दुखी आत्मा रोती जा रही हैं !

शिक्षा का स्तर गिर रहा पढ़ते सरकारी स्कूलों में,
धनाढ्य बच्चे अंग्रेजी माध्यम व्यवस्था चरमराती जा रही है!

ग़रीब की आवाज़ फ़रियाद सुनता नहीं कोई क़ाज़ी ह़ाकम,
घुट कर मर रही ग़रीबी कराहती जा रही है !

ग़रीब अमीर को एक तराज़ू में तोलना चाहिये ‘कागा’
लोक तंत्र की लच्चर प्रणाली घबराती जा रही है !

मेरा भारत


मेरा भारत महान सब सुखी रहें इंसान,
मेरा भारत महान सब सुखी रहें किसान!

सत्यम शिवम सुंदरम सत्य मेव जयते अटल,
महंगाई का मुंह काला जय हो संविधान!

संविधान की प्रस्तावना में निहित सम्पूर्ण निचोड़,
धर्म निरपेक्ष है मुल्क हमारा जय जवान!

पड़ोसी मुल्कों से सटी सीमायें बेह़द सुरक्षित ,
घाक चोबंद चोकसी सीमा प्रहरी रहते सावधान !

कर नशा भय मुक्त रहे भारत हमारा ,
क़र्ज़ नही रहे एक कोड़ी जय विज्ञान !

जाति धर्म मज़हब की दीवार टूटे ‘कागा’
ख़ुशहाली रहे ग़रीबी का नहीं नामो-निशान !

इश्क़

लगता है मुझे भी इश्क़ हो गया,
लगता नहीं दिल मेरा इश्क हो गया!

जवानी का जोश जुनून जज़्बात नहीं ज़रा,
दिल बड़ा दीवाना मस्ताना कहां खो गया !

मेरा माशूक़ रुह़ बन रहता मेरे अंदर ,
आशिक़ बन खोज रहा बाहर खो गया!

अश्क बहते नैनों से मन बड़ा बेचैन,
सांसों में समाया गहरी नींद सो गया !

बाहरी बुत्त रंगीन हसीन मेरा मस्त मोला ,
जब हुआ दीदार मैं ग़नी हो गया!

इश्क़ मुझे ह़क़ीक़ी मिजाजी मजाज़ी नहीं ‘कागा’
उमर गुज़री जुदाई में इश्क़ हो गया!

आदम ज़ात

कुत्ते तो कुत्ते होते है भौंकना आ़दत उनकी ,
पालतू हो चाहे फ़ालतू हो भौंकना आ़दत उनकी !

ख़ुश होनै पर मुंह घाटते नाराज़गी पर काटते,
पूंछ टेढ़ी सीधी नहीं हो सकती आ़दत उनकी !

पिल्लों का झुंड हो चाहे टामी अकेला अलबेला ,
गुर्राते टूट पड़ते कर सीधा ह़मला आ़दत उनकी !

चंद आदम भी कुत्तों की फ़ित़रत हुब्हू होती,
कम्मियां खोजते रहते करते बदनाम अजब आदत उनकी!

तिल का ताड़ राई का पहाड़ बनाते रहते,
फंसाने का गूंथ देते जाल चाल आ़दत उनकी!

कुत्ता बन गये मगर बावफ़ा नही बने ‘कागा’
इंसान के साथ इंसान नहीं बनें आदत उनकी!

दर्द ए दिल

दर्दे दिल झलक जाता अश्क बन कर,
दर्दे दिल छलक जाता अश्क बन कर !

फ़िराक़ में फ़ना होता वजूद बर्बाद बेचारा ,
दर्दे दिल दुबक जाता अश्क बन कर !

जले दिल के फफोले किस को दिखायें ,
दर्दे दिल सुबक जाता अश्क बन कर !

सीने में सुलग रही आग बुझती नहीं,
दर्दे दिल भभक जाता अश्क बन कर !

स़दियों पुराना जाना पहचाना हमारा रिश्ता नाता ,
दर्दे दिल खटक जाता अश्क बन कर !

माना ज़ालिम है ज़माना कोई सगा नहीं ,
दर्दे दिल भटक जाता अश्क़ बन कर !

दर्द होता है बेदर्द होते हमदर्द बेगाने ,
दर्दे दिल लटक जाता अश्क़ बन कर !

दिल तोड़ने के करते बहाने बेशुमार बेवफ़ा ,
दर्दे दिल अटक जाता अश्क बन कर !

दो फूल चढ़ा देना क़बर पर ‘कागा’
दर्दे दिल महक जाता अश्क बन कर !

जीना मरना

जीना हुआ जंजाल नफ़रत के माह़ोल में ,
मरना हुआ मुह़ाल नफ़रत के माहोल में !

नफ़रत के नाग रेंगते रहते फन फेलाये ,
टेढ़ी मेढ़ी चाल नफ़रत के माह़ोल में !

चिंगारी सुलगाई चाटुकारों ने आग भभक रही ,
ज्वाला बनी मशाल नफ़रत के माह़ोल में !

फ़िरक़ा-परस्ती का बिग़ुल बजा ज़हर घोला ,
मचा बड़ा बवाल नफ़रत के माह़ोल में !

नाम निहाद अनास़र अमनो अमान नही चाहते ,
दंगा कराते दलाल नफ़रत के माह़ोल में ?

ज़ात मज़हब जाल में जकड़ गये ‘कागा’
इंसानियत पर सवाल नफ़रत के माह़ोल में !

मेरी याद

अगर आये मेरी याद ज़रूर याद करना ,
अगर सताये मेरी याद ज़रुर याद करना !

दिल की धड़कने सुन लेना ग़ौर से,
अगर बताये ख़ास़ बात ज़रूर याद करना !

दिल देकर दिल दिया दग़ा नहीं किया ,
अगर गाये नग़मा प्यारा ज़रूर याद करना!

स़िदक़ है मिलने की दिल दूर नज्ञी ,
अगर चाहे दिल मिलना ज़रूर याद करना !

दिल बड़ा बेताब रहता मिलना आसान नहीं
अगर दबाये दर्द बेदर्द ज़रूर याद करना!

बेचैन बद ह़वास इधर उधर डोलता ‘कागा’
अगर आज़माये दिल प्यारा ज़रूर याद करना !

मुतालबा

मुझे मंज़ूर है हर त़रह़ का मुत़लबा तेरा,
मुझे क़बूल है हर त़रह़ का मुत़लबा तेरा !

बिना मांगे दिल सुपुर्द कर दिया दिलरुबा तुमको,
जान मांगो ह़ाज़िर कर देंगे मुकमल मुत़ालबा तेरा !

तेरा मेरा रिश्ता स़दियों पुराना जिस्म में रूह़,
तेरे बिना बेजान बेगाना बंदा नाक़ाम मुत़ालबा तेरा!

तेरे ह़ुस्न का दीवाना दिल तड़प रहा हरदम,
अश्क उमड़ रहे आंखों से होकर मुत़ालबा तेरा !

दिल बड़ा पागल मचल उछल रहा सीने में,
मलाल मिलने का बेचैन बड़ा बेक़रार मुत़लबा तेरा!

आंखों ने ईक़रार किया इंतज़ार कब तक ‘कागा’
दिल तेज़ तर्रार करता तकरार मुत़ालबा तेरा

मुसाफ़र


नहीं तुम रहोगे नहीं हम रहेंगे चले जायेंगे,
नहीं दोस्त रहेंगे नहीं दुश्मन रहेंगे चले जायेंगे !


दुनिया दो दिन का मेला आना ओर जाना,
नहीं यह रहेंगे नहीं वो रहेंगे चले जायेंगे!


सूरज चांद सितारे चलते रहते सब है मुसाफ़र,
नहीं अमीर रहेंगे नहीं ग़रीब रहेंगे चले जायेंगे!


दुनिया फ़ानी ग़ुरूर नहीं कर गाफ़ल बंदा ,
नहीं सिकंदर रहेंगे नहीं क़लंदर रहेंगे चले जायेंगे!


आंखों की चमक बता देती ख़ुशी की रंगत ,
नहीं वज़ीर रहेंगे नहीं फ़क़ीर रहेंगे चले जायेंगे !


चार दिनों की चांदनी फिर रात होती अंधेरी,
नहीं अपने रहेंगे नहीं पराये रहेंगे चले जायेंगे !


यह दुनिया मुसाफ़र खा़ना चंद रोज़ का बसेरा,
नहीं महमान रहेंगे नहीं मेज़बान रहेंगे चले जायेंगे !


नेकी कर जहान में संग चलेगी ज़रूर ‘कागा’
नहीं स़ूरत रहेगी नहीं मूर्त रहेगी चले जायेंगे!

कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा

पूर्व विधायक

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