बेबाक रघुवंश बाबू!
बेबाक रघुवंश बाबू!

बेबाक रघुवंश बाबू!

( Bebaak Raghuvansh Babu ) 

 

पंचतत्व में विलीन हुए रघुवंश बाबू,
राजनीति में चलता था उनका जादू।
बेबाक थे ,बेबाक रहे,
जो जी में आया वही कहे।
अपने देसी अंदाज के लिए जाने जाते थे,
ठेठ भाषा और बोली से आकर्षित करते थे।
समाजवाद के बड़े पैरोकार रहे,
पांच पांच बार सांसद विधायक भी रहे।
राजद में लालूजी के बाद यही बड़े नेता थे,
जिन्हें लालू यादव भी बहुत सम्मान देते थे।
असहमति की आवाज जरूर उठाते थे,
लालूजी भी यह बात जानते समझते थे।
दोनो में एक अदृश्य समझ थी,
दोनों का साझा नेतृत्व ही-
असल में पार्टी की ताकत थी।
सवर्ण आरक्षण के विरोध पर लालूजी को समझाए ,
वह मान भी गए।
पर तेजस्वी ज़िद पर अड़ गए,
फलस्वरूप लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार गए।
जाते जाते लालू के वंशवाद पर प्रहार कर
गए,
विरोध का पत्र लिख पार्टी को भी अलविदा कह गए।
चिट्ठी में पार्टी छोड़ने की थी बात,
जवाब में लालूजी ने भी लिखा एक खत।
सम्मानपूर्वक आदर किया,
मिल-बैठकर मसला हल करने का आश्वासन दिया।
तब तक उनके निधन की खबर आई,
चहुंओर निराशा ही निराशा छाई।
राजद परिवार शोकाकुल हुआ,
एक मजबूत स्तंभ जो गिर गया।
ऐन चुनावों के वक्त रघुवंश बाबू का जाना,
पार्टी छोड़ना।
राजद के लिए अच्छा संकेत नहीं है,
यह एक अपूरणीय क्षति है।
रोजगार गारंटी योजना के जनक थे रघुवंश बाबू,
गांव गांव तक फैला है इस स्कीम का जादू।
योजना ने गांव में ही रोजगार दिला दी,
इसी के दम पर आज गांवों में दिख रही है खुशहाली।
यह योजना अब भी चल रही है,
कोरोना काल में बड़ी काम आ रही है।
उनकी अंतिम इच्छा भी सामने आई है-
मुख्यमंत्री से 26 जनवरी को वैशाली में-
झंडा फहराने की बात कही है;
विश्व में सर्वप्रथम गणतंत्र वैशाली में ही रही है।
मनरेगा से खेतों में भी काम कराने की वकालत की है,
बुद्ध का भिक्षापात्र अफगानिस्तान से लाकर बिहार में स्थापित करने की मांग की है।
उनकी अंतिम इच्छाएं पूरी करे सरकार,
ऐसे नेता सदियों में पैदा होते हैं एकबार।

 

 

नवाब मंजूर

लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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