कहां हो मेरे पुरखों

( Kahan ho mere purakhon ) 

 

मैं आऊंगा नहीं कभी भी लौटकर यह ध्यान रखना,
चला गया हूं ध्यान रखना सदा के लिए तुम्हें छोड़कर।

याद आ रही है आपकी हर वक्त हर पल,
भूले से भी नहीं भूल पा रहे साथ रहकर।

याद आ रहा है हमेशा परछाईं की तरह,
मुंडेर पर बोलना तुम हमेशा कव्वा बनकर।

अन्नजल में ढ़ुढते अपने पूर्वज को इस लोक में,
सरकार आपकी थी ना चिंता ना थी कभी फिक्र।

कर समर्पित अन्न-जल उनको मिलकर परिवार,
बुढो को याद हमेशा करेंगे आपके नाम दानकर।

किस हाल में होंगे क्या पता मेरे पुरखे तमाम,
साथ चलना चा रहा हूं बताओ आप साथ रहकर ‌‌।

कब तक चलेगा ये ना सोचूं ना ना हो आपके लिये,
देगा तब ही पायेगा पक्ष ये हमेशा पितरों का उतर।

भाव हमेशा दया का रख आश्विन ये माह श्रद्धा में,
दान निकाल कुछ कर अपनों के लिये आज जानकर।

तार तू पार तू पीढ़ी-दर-पीढ़ी आशीष उनका पायेगा,
इस परंपरा को आगे बढ़ाने हमेशा समय निकाल कर।

इस जग में जो आया है वह हमेशा के लिए जाना है,
घमंड ना कर बन्दे एक दूसरे को दे सहारा बनकर।

करम अच्छा करेंगे तो याद जमाना सदा रखेगा आपको,
खान मनजीत आप भी आज से काम अच्छे शुरू कर ।

 

Manjit Singh

मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )

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