आखिरी रास्ता

आखिरी रास्ता

अनपढ़ रामू मजदूरी करता था। एक दिन प्रात 8:00 बजे जैसे ही वह काम पर पहुँचा, तो उसके मजदूर साथी सौरभ ने उससे कहा-

“रामू भैया, तुम आज काम पर क्यों आए हो? तुम्हारे घर तो मेहमान आए हुए हैं। तुम्हें तो आज उनके साथ होना चाहिए था। एक दिन काम पर ना आते तो क्या हो जाता?”

“सौरभ भाई, यह क्या बोल रहे हो? मेहमान और मेरे यहाँ? मैं अब घर से ही तो आ रहा हूँ। मेरे घर तो कोई मेहमान ही नहीं आया? शायद तुम्हें गलतफहमी हुई होगी।” रामू बोला।

“तुम भी मजाक करते हो भाई? मुझे गलतफहमी क्यों होगी? अच्छा सच बताना- क्या कल शाम शादी के लिए… तुम्हारे बड़े लड़के अनिल को देखने के लिए लड़की वाले तुम्हारे घर नहीं आए थे? क्या तुम्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता?”

“सौरभ भाई, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? और यह मेरे बड़े लड़के अनिल को देखने का क्या मामला है? तुम खुद सोचो- अगर अनिल को शादी के लिए देखने कोई आएगा तो क्या मुझे पता नहीं चलेगा?”

“रामू भाई, लेकिन ऐसा हुआ है। मैं तो खुद हैरान हूँ कि तुम्हें इस बारे में कैसे नहीं पता? यह कैसे हो सकता है कि तुम्हारी पत्नी रचना और दोनों बच्चों अनिल और सुनील ने तुम्हें इस बारे में क्यों नहीं बताया? मैं कल शाम जब मंदिर गया तो मुझे तुम्हारी पत्नी रचना, तुम्हारे दोनों बच्चे अनिल व सुनील, तुम्हारे बड़े भाई अशोक और उनकी पत्नी.. मेहमानों के साथ घूमते नजर आए थे। मैंनें तुम्हारे छोटे लड़के सुनील से जब मेहमानों के बारे में पूछा कि ये लोग कौन हैं?

तो उसने बताया- “बड़े भैया अनिल को देखने ये लोग पड़ोसी जनपद से आए हैं। काफी भले और मालदार लोग हैं। इनकी लड़की काफी पढ़ी लिखी है, सुंदर है, गृह कार्य में दक्ष है, B.Ed की हुई है, काबिल है। देर सवेर उसकी मास्टरी में नौकरी लग ही जाएगी। बहुत अच्छा रिश्ता है।

आज रात ये लोग घर पर ही रुकेंगे और कल सुबह 11:00 बजे तक अपने घर के लिए निकल जाएंगे। हम सबने सोचा कि अपने शहर का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है, दूर दूर से लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं… क्यों न इनको मंदिर के दर्शन करा दिये जायें। क्या पता.. ईश्वर की कृपा से रिश्ता हो ही जाए? इसलिए हम लोग इन्हें घुमाने यहां ले आए। पिताजी घर पर रुककर इन लोगों के रुकने, ठहरने व खाने पीने का इंतजाम कर रहे हैं।”

इसके बाद मैंनें तुम्हारे सुनील से ज्यादा बातें नहीं की और मेहमानों का अच्छे से ध्यान देने को बोलकर मैं आगे बढ़ गया। और अब यहां तेरे मुंह से यह सुनकर… कि तुम्हें मेहमानों के बारे में कुछ भी नहीं पता.. मुझे बड़ा अजीब लग रहा है। कम से कम भाभी जी मतलब तुम्हारी पत्नी रचना को या तुम्हारे बड़े भाई अशोक को इस बारे में तुम्हें बताना तो था। अगर मेरी पत्नी या बच्चे मेरे साथ मेरी पीठ पीछे ऐसा करते तो मैं उन्हें जान से मार देता।”

रामू को सौरभ की बातों में कुछ-कुछ सच्चाई नजर आई। उसने घड़ी देखी तो 8:30 बज रहे थे। उसने सोचा- अगर वह घर के लिए तुरंत निकलता है तो अगले 30 मिनट में 9:00 बजे तक वह घर पहुँच जाएगा। सौरभ अगर सच बोल रहा है तो अभी मेहमान घर पर ही होंगे। 10:00 बजे से पहले वे निकलेंगे नहीं। उसने दूध का दूध और पानी का पानी करने का निश्चय किया। रामू ने साइकिल उठाई और घर के लिए तेजी से निकल गया।

आज 30 मिनट का रास्ता उसने मात्र 20 मिनट में तय कर लिया था। घर जाकर उसने देखा कि घर के सब लोग घर का ताला लगाकर गायब थे। मोबाइल उसके पास था नहीं, जो वह फोन पर बात कर लेता। अशोक का घर उसके घर से 300 मीटर की दूरी पर था। वह भागकर अपने बड़े भाई अशोक के यहां पहुँचा।

अशोक के घर के बाहर दो कार खड़ी हुई थी। कार खड़ी देखकर उसको यकीन हो गया कि सौरव ठीक कह रहा है। मेहमान तो आए हुए हैं। उसने चुपके से घर में झांककर देखा उसे कोई नजर ना आया। वह दबे पांव घर में घुस गया। अंदर जाकर उसने देखा कि सभी लोग बड़े हॉल में बैठे हुए हैं और चाय नाश्ता कर रहे हैं। अनिल, सुनील और रचना वहीं मौजूद हैं और उनको खाना खिलवा रहे हैं। रामू ने उस समय उनसे कुछ कहना उचित न समझा और वहां से निकल गया। मेहमानों ने रामू को जाता देखकर पूछा- “ये कौन हैं जो यहाँ आए थे?”

अनिल बोला-

“ये पड़ोस में रहते हैं और मजदूरी का काम करते हैं। बस यूं ही देखने आ गए थे।”

यह बात घर से बाहर निकलते हुए रामू ने सुन ली थी। मेहमानों के चले जाने के बाद जब वे तीनों घर पहुँचे तो.. रामू ने उनसे सवाल करने शुरू किये-

“तुम सब घर का ताला लगा कर वहाँ क्या कर रहे थे? वे लोग कौन थे?”

रचना बोली-

“ये लोग अनिल को देखने के लिए पड़ोस के जनपद से कल शाम ही आ गए थे। हमारा घर बहुत छोटा है तो हम उनको अपने घर पर कैसे रूकवाते? इसलिए अनिल ने इनको रोकने का इंतजाम अपने ताऊ जी के यहाँ कर दिया था।”

“तुमने इस बारे में मुझे कुछ बताना भी सही नहीं समझा। क्यों? क्या मैं इसका कारण जान सकता हूँ?” रामू ने रचना से सवाल किया।

“मैं बताता हूँ। मैंनें ही मम्मी को मेहमानों के बारे में तुम्हें बताने से मना किया था। हम सबको बचपन से ही तुम्हारा इस तरह मजदूरी करना, गिरा हुआ छोटे लेवल का काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। इस बारे में बहुत बार हमने तुमसे कहा कि यह सब मत करो। इससे हमें दिक्कत होती है। लेकिन तुम नहीं मानें। ताऊ जी ने भी तुमसे बहुत बार कहा कि मेरे साथ ठेकेदारी का काम कर लो लेकिन तुम ना माने।

ठेकेदारी के काम में ताऊजी कहाँ से कहाँ पहुँच गए? आज उनके पास रुपए पैसों की, जगह की कोई कमी नहीं है.. और हम वहीँ पुराने सड़े से छोटे से घर में पड़े हुए हैं। अगर कोई आ जाए तो हम उसको घर में सुला भी नहीं सकते। आज जब हम दोनों भाई एक प्राइवेट कंपनी में अच्छी पोस्ट पर काम कर रहे हैं और ठीक-ठाक कमा रहे हैं तो भी आपने मजदूरी का काम करना बंद नहीं किया।

तुम्हारी सोच और तुम्हारे रहन-सहन का स्तर हमें कहीं से कहीं तक पसंद नहीं है। तुम्हारे साथ खड़ा होने व अपने दोस्तों से मिलवाने में हमें बड़ी शर्म आती है। इसलिए हम सबने ही सोच समझकर निर्णय लिया कि इतने अच्छे मालदार घर से रिश्ता आया है, यह हाथ से नहीं जाना चाहिए। ये मेहमान लोग अगर तुम्हें देखते, तुमसे बातें करते तो रिश्ता जुड़ने से पहले ही खत्म हो जाता। इसलिए हमने इन लोगों को ताऊ जी के यहाँ रुकवाना ठीक समझा। हम आपको इस बारे में बताते लेकिन तब.. जब रिश्ता पक्का हो जाता।”

“क्या उन लोगों ने भी एक बार यह नहीं पूछा कि तुम्हारे पिताजी कहाँ है और क्या करते हैं?” रामू ने सवाल किया।

“हाँ, पूछा था। लेकिन हमने ताऊ जी को ही पिताजी बनाकर मिलवा दिया था।

रामू सर पकड़ कर बैठ गया। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। उसे घिन आने लगी।वह सोचने लगा कि इस परिवार के लिए मैं मरे जा रहा हूँ और इस परिवार को मेरी बिल्कुल भी परवाह नहीं है। उसे शुरू से अब तक की हर बातें याद आने लगी कि किस तरह दिन-रात मेहनत मजदूरी करके, अपने सपनों का गला घोंटकर उसने अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया-काबिल बनाया।

आज यही बच्चे उसे आंख दिखाएंगे, उसे अपना पिता मानने से इंकार कर देंगे, दूसरों को पिता बना लेंगे।… इनको अपने पिता के काम पर शर्म आने लगेगी, इस शर्म की वजह से वे चार जनों में उसे अपना पिता कहने में हिचकिचाएंगे। उसकी पत्नी भी उसका साथ नहीं देगी, बच्चों के साथ हो जायेगी।

इसका उसे बिल्कुल यकीन नहीं था। आखिर उसकी गलती क्या है? क्या पैसा ही जिंदगी में सब कुछ होता है? क्या ऊंची ऊंची बिल्डिंग में रहना, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनना… क्या यही सब कुछ है? अपने भाई की तरह वह ज्यादा रुपए नहीं कमा पाया। क्या यही उसकी गलती है? वह मजदूरी करता है क्या यही उसकी गलती है? या उसने अपने अपना पेट काटकर परिवार का भरण-पोषण किया, बच्चों को काबिल बनाया, क्या यही उसकी गलती है?

बच्चों की नौकरी लगने के बाद उसने अपने खर्चो के लिए, रुपये बच्चों से मांगने की बजाय, मेहनत मजदूरी करनी बंद ना की.. तो क्या यह उसकी गलती है? अब जबकि यह दोनों बच्चे पैसे कमाने लगे हैं तो क्या इनकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि इस घर को अच्छा बनाया जाए? क्या यह भी उसकी गलती है? पत्नी का, बच्चों का हर तरह से, हर जगह साथ दिया। क्या यह भी उसकी गलती थी?

ऐसे कैसे हो सकता है कि बच्चे अपने पिता के समर्पण को, त्याग को भूल जायें। इस मामले में उनकी मां, मेरी धर्मपत्नी भी उनका साथ दे, यह स्थिति कतई स्वीकार्य नहीं है। मैं समाज में अब किस तरह सिर उठाकर चल सकूंगा? मैंने जो इज्जत कमाई थी, वह सब मिट्टी में मिल गई।

मेरे बच्चों ने ही मुझे समाज में शर्मसार कर दिया। अब मैं किसी को मुँह दिखाने के काबिल ना रहा। शायद मेरे संस्कारों में ही कमी रही जो कामकाज के चक्कर में बच्चों को अच्छे संस्कार ना दे पाया। अब पछताने से क्या फायदा जब चिड़िया चुग गई खेत?

आज अगर इन्होंने मुझे मरा हुआ मान ही लिया है तो मुझे सच में मर ही जाना चाहिए। इनकी बदतमीजी देखते हुए पल-पल, हर रोज मरने से अच्छा है कि आज ही खुद का ही जीवन समाप्त कर लिया जाए। ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी। मेरे बाद कम से कम ये लोग खुलकर, सीना चौड़ा करके जी तो सकेंगे। उनकी तरक्की में, आगे बढ़ने में मैं ही सबसे बड़ी बाधा हूँ, सबसे बड़ी रुकावट हूँ।

अतः मेरा मर जाना ही सही है। ऐसी नकारात्मक बातें रामू के दिलो दिमाग पर हावी हो गई। सब तरह के दुःखों से मुक्ति हेतु मर जाने का… उसे यही एक आखिरी रास्ता नज़र आया। शाम को सौरभ जब काम से वापिस आया, तो उसे पता चला कि रामू ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली है। वह खूब रोया।

उसे बड़ा पछतावा हो रहा था कि उसने कल वाली बात आज सुबह रामू को क्यों बताई? न वह रामू से अनिल के रिश्ते के बारे में बोलता और न ही रामू काम से घर आता… और इस तरह बच्चों की वजह से खुदकुशी के लिए मजबूर न होता।

शिक्षा:-

माता-पिता को बचपन से ही अपने बच्चों में अच्छे संस्कार भरने चाहिए। किताबी ज्ञान से कुछ नहीं होता। किताबी ज्ञान से व्यक्ति अच्छी नौकरी तो हासिल कर सकता है, लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बन सकता। अच्छा इंसान अच्छे संस्कारों से ही बना जा सकता है। पिता के काम पर जाने या घर पर ज्यादातर अनुपस्थित रहने की स्थिति में माता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

माता ही बच्चों में अच्छे संस्कार भरना और पिता का आदर करना सिखाती है। पिता बच्चों की खुशी के लिए तन, मन, धन से हर समय तैयार रहता है और अंत में अपनी जिंदगी बच्चों पर ही न्यौछावर कर देता है। पिता सुबह से शाम तक जी तोड़ मेहनत करके अपने बच्चों, पत्नी की हर ख्वाहिश, हर सपने को पूरा करता है, उनको कामयाब इंसान बनाता है।

अतः ऐसे में बच्चों को भी अपने पिता के काम पर गर्व करना आना चाहिए। कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता, इंसान की सोच छोटी-बड़ी होती है। यह दुःखद स्थिति है कि जब बच्चें कामयाब होकर, माता-पिता से किनारा कर लेते हैं, दूरियां बना लेते हैं।

ऐसे में इंसान खुद को असहाय महसूस करके मर जाना चाहता है क्योंकि उसे जिंदा रहने का कोई मकसद और औचित्य नजर नहीं आता। कोशिश करें कि हम माता-पिता को मन, वचन व कर्म से कष्ट देने का काम ना करें। उनकी भावनाओं का, बातों का, स्वास्थ्य का ध्यान रखें, उनको मान सम्मान दें। उनसे अच्छा व्यवहार करें। माता-पिता का हमारे साथ होना ही ईश्वर का सबसे बड़ा आशीष है।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा

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