सुधीर जो भी काम करता अक्सर उसमें असफल हो जाता। किसी प्रकार से उसका घर चल पा रहा था। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें ?
उसने एक दुकान कपड़ों की खोला लेकिन वह भी बंद करनी पड़ी।
उसके पिताजी कुछ झाड़ फूंक किया करते थे। बचपन में वह उन्हें ऐसा करते हुए देखा करता था।
कोई काम तो था नहीं । ऐसे घर पर अक्सर वह निठल्ले बैठा रहता था। एक दिन सोचा पिता जी वाला काम ही क्यों ना शुरू किया जाए। चल गया तो चल गया नहीं तो नुकसान ही क्या है?

फिर क्या था जब कोई किसी का बच्चा वगैरा बीमार होता तो ऐसे ही वह फूक फाक मार दिया करता।
कभी-कभी कुछ बच्चे ठीक भी हो जाते थे। इस प्रकार से सफलता होते देख उसने जनता की भावनाओं से खेलने का प्लान बनाया।
फिर उसने भूत उतारने की दुकान सजाना शुरू कर दिया।
यह दुनिया विषेशकर स्त्रियां भूत प्रेत की समस्याओं से अधिक ग्रसित देखी गई हैं।
ऐसी भूत प्रेत से ग्रसित स्त्रियों का जमघट उसके यहां शुरू हो चुका था।
भूत प्रेत के बारे में उसे यह पता था कि किसी को भूत प्रेत तो पकड़ता नहीं है । यह सब काम से जी चुराने के लिए नौटंकी करती हैं।
अधिकांश में वह लौंग आदि चूसने के लिए दे दिया करता। जिससे सर दर्द आदि में राहत हो जाती तो औरतें कहती बहुत अच्छा लग रहा है। लगता है हमारा भूत उतर चुका है।

किसी प्रकार से उसकी दुकानदारी चल निकली। उसे खुद पता नहीं था कि इस बिजनेस में इतना बड़ा लाभ होने वाला है।

जब किसी को लाभ नहीं होता था तो वह कहता कि-” क्या करें कोशिश तो बहुत किया हमने । हम मना ही सकते हैं। और वह अपनी असफलता से बच जाता था।”

भारत देश में अंधविश्वास इतना जकड़ा हुआ है कि यहां सबसे सस्ता और अच्छा धंधा अंधविश्वास को फैला कर अपनी झोली गर्म करना ही है। यहां जो जितनी मात्रा में धर्म के नाम पर जनता को बेवकूफ बना सकता है वह उतना ही बड़ा धर्म का ज्ञाता कहलाता है।

भूत प्रेत की मान्यताएं भी पूर्ण रूप से निराधार होती हैं। शरीर छोड़ने के बाद जीव को अन्यत्र भटकने की कोई व्यवस्था नहीं है। क्योंकि जीव को अन्य जन्म लेने के लिए एक दिन से 12 दिन के भीतर ही सारी प्रक्रियाएं पूरी हो जाती हैं । इस प्रकार भी भूत प्रेत बनकर किसी को दुःख देना , कष्ट देना कैसे संभव हो सकता है?

कुछ लोगों का कहना है कि एक्सीडेंट से या किसी बीमारी से मरे हुए की आत्मा भटकती है भूत प्रेत बनकर या उनकी आत्मा जन्म लेती है?

मूल बात यह है कि इस प्रकार से कुछ भी नहीं होता है। एक्सीडेंट से मरे या व्याधि से आत्मा शरीर तभी छोड़ता है जब उसके योग्य शरीर नहीं रह जाता। या फिर उसके रहने की अवधि पूरी हो गई हो । अन्यथा वह शरीर नहीं छोड़ता । इसे ऐसा समझा जा सकता है कि कोई सामान्य मृत्यु से मरे या बीमारी से मरे या एक्सीडेंट से, मृत्यु किसी भी स्थिति में हों यह सब उसके कर्मों का फल या परिणाम होता है। इस प्रकार से भूत प्रेत बनकर भटकने की संभावना खत्म हो जाती है।

इस प्रकार से जब किसी भी व्यक्ति को भूत प्रेत बनने की संभावना खत्म हो जाती है तो झाड़ फूंक का कोई कारण नहीं बचता है। लेकिन फिर भी देखा गया है कि पीढ़ी दर पीढ़ी यह संस्कार चला आ रहा है।

जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है इस भूत प्रेत आदि उतारने की दुकानदारी भी कम हो रही है। फिर भी धर्म की आड़ में बिजनेस का रूप ले चुका है।

अक्सर देखा गया है की ओझा सोखा आदि जब किसी भूतादि व्याधि से पीड़ित व्यक्ति के समक्ष होते हैं तो वह तरह-तरह की असामान्य रूप से हरकत करते हैं और कुछ ना समझ में आने वाले बातों को बोलते हैं।

जो कि व्याधि ग्रस्त व्यक्ति को कुछ अजीब , कुछ विचित्र सा लगता है। या कुछ ताबीज आदि बांधते हैं। या फिर कुछ भस्म लवंग आदि खिलाते हैं। इसके अलावा कुछ धूप मिर्च आदि जलाते हैं ।

इन सब क्रियाओं से व्याधि ग्रस्त के मस्तिष्क में यदि विचारधारा बदलती हैं तो ठीक नहीं तो कहते हैं कि भूत बहुत बड़ा बलवान है। इसके लिए बहुत बड़ा कार्यक्रम करना पड़ेगा । बकरा बकरी मुर्गा दारु शराब आदि चढ़ाना पड़ेगा तभी मानेगा।

इसको एक कथानक के माध्यम से समझते हैं-

एक बार एक स्त्री की शादी हुई । जब वह ससुराल आई तो कुछ दिनों बाद उसकी सासू ने कहा-” बेटी आज आटा खत्म हो गया है । तू आज चक्की में गेहूं पीस ले ।”
बहू ने गेहूं तो पीस लिया परंतु वह एक नंबर की आलसी थी। वह काम से जी चुराती थी। उसने कोई तरकीब निकालने का प्रयास किया । जिससे वह आटा पीसने से बच जाए?

उसने एक तरकीब सोची। उसने अपने मायके में देखा था कि किस प्रकार से उसकी भाभी ने भूत का नाटक किया था। उसने सोचा कि यदि वैसा ही कुछ किया जाए तो चक्की पीसने की से बचा जा सकता है।

इसके बाद उसने एक दिन चक्की चलाते हुए बेहोश होने का नाटक कर लिया और फिर लोग उसके ऊपर पानी के छीटे डाले तब होश में आई। इसके अलावा उसने और सर दर्द बदन दर्द का नाटक साथ में जोड़ लिया । गांव वालों ने सलाह दिया कि इसे कोई भूत- प्रेत – डायन पकड़ लिया है । घर के लोग बेचारे क्या करते ?

उसे एक ओझा बाबा के पास ले गए। बहू को बाबा ने देखा और साथ आएं लोगों से कहा – ” आप लोग थोड़ा बाहर ही बैठे । मैं इसे भीतर ले जाकर देखता हूं क्या है? बहू को भीतर ले जाकर ओझा बोला- बात क्या है ? क्या तकलीफ है ? मैं सब ठीक कर दूंगा। ”

बहू ने कहा-” हमें चक्की चलाने को कहा जाता है और मैं चलाना नहीं चाहती हूं ।”
ओझा ने कहा – ” हो जाएगा! तू बस देखती जाओ ।”
फिर ओझा बहू को लेकर बाहर आया और बहूं के साथ आए लोगों से बोले-” इसको चकिया मसान ने पकड़ लिया है।इसको बहुत कुछ भेंट देना पड़ेगा। तब वह छोड़ेगा । ”
बहू के पति ने पूछा-” क्या-क्या भेद देना पड़ेगा ?”
ओझा बाबा ने कहा -” एक मन आटा , बकरा , बकरी, मुर्गा, दारु , शराब आदि। साथ ही 1100 रुपया आदि दक्षिणा ।”
उसके पति ने पूछा-” बाबा यह सब हम देते हैं किंतु फिर इसे कोई परेशानी तो नहीं होगी।”
बाबा ने कहा -” चकिया मसान कह रहा है कि आज के बाद चक्की को हाथ ना लगाएं तो हम कभी कोई कष्ट नहीं देंगे ”
घर वालों ने स्वीकार कर लिया बाबा को सामान दे दिया गया और बहू का चक्की चलाना बंद हो गया ।

परंतु औरतों का स्वभाव एक दिन गांव की एक और औरत ने कहा -” तेरा तो भाग्य अच्छा है तुझे चक्की चलाने से छुट्टी मिल गई”।
तो बहू ने कहा कि – ” यह तो हमारा खेल था । जो बाबा ने छुड़वा दिया । ”

तब उसने सारी कहानी कह सुनाई और उस औरत ने अपने पति को सुनाया । उसके पति ने बहू के पति को सारी बात बता दिया।
तब पति ने एक दिन हाथ में डंडा लेकर खड़ा हुआ बोला -” बेसरम औरत! मेरी बूढ़ी मां चक्की चलाकर गेहूं पीसे और तू बैठकर खाए। आज से चक्की चला नहीं तो तेरी खैर नहीं ।”

खैर चकिया मसान के सारी कहानी मैंने जान ली है । अब या तो गेहूं पीस नहीं तो घर से निकल जा । इसके बाद उसे औरत ने अपने पति से क्षमा मांगने लगी । जब जाना की बिना गेहूं पीसे बिना नहीं बचा जा सकता तो मन मार कर गेहूं पीसने लगी।

इस प्रकार से हम देखते हैं कि औरतें किस प्रकार से भूत प्रेत की नौटंकी करके काम से जी चुराना चाहती हैं। सुधीर भी ऐसी नौटंकीबाज औरतों को देखा करता था। यही कारण था कि उसने भूत भगाने की दुकान खोलने का धंधा शुरू किया।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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