झरती बुंँदियों संग आखरों की जुगलबंदी
झरती बुंँदियों संग आखरों की जुगलबंदी…
सावनी सहर का आलम
गर्म चाय की प्याली और हम
पसंदीदा पुस्तक का साथ
नर्म – नम बूंँदों की तुकबंदी
ऐसी बंदिश इस उजास में
रच देती है सबसे सुहाने पल।
आंँगन बुहारती बूँदें
आनंद वर्षा में भिगो
भावों की तपिश को
शीतल कर देती है कि
नई इबारत की नई रोशनी
खिल जाती है मन के भीतर।
शफ़े पर उमड़ते- घुमड़ते
भाव का कुहासा फिर
घिरने लगता है बुंँदियों संग
खिड़की के ग्लास पर
घनीभूत हो फिर
पिघलने लगता है धारों में
पुस्तक के लघु वातायन से
निकल वृहृदाकार होते हुए
कि बंदिश पहुंँच जाती है
अपने अंजाम पर ।
( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )
भोपाल, मध्य प्रदेश
aarambhanushree576@gmail.com