परहित का फल | Kahani Parahit ka Phal
एक आदमी बहुत गरीब था। बचपन में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।
एक बार उस लड़के की मां ने कहा —
“जाओ बेटा!जंगल में एक बाबा जी आए हुए हैं। वह जो भी आशीर्वाद देते हैं फलित होता है।”
लड़का मां का आशीर्वाद लेकर चल दिया । रास्ते में एक सेठ का घर मिला। लड़के को प्यास लगी थी।
उसने आवाज लगाई तो सेठानी ने लड़के को जलपान कराया ।
सेठानी के पूछने पर लड़के ने कहा -“वह अपनी गरीबी का समाधान जंगल में बाबा जी से करने जा रहा है ।”
सेठानी ने कहा -“बेटा मेरा भी एक प्रश्न पूछते आना कि मेरी गूंगी बिटिया की शादी किससे होगी।”
लड़के ने जी माता जी कह कर आगे बढ़ा तो एक स्वामी जी की कुटिया दिखी। वह वहां कुछ क्षण विश्राम करने के लिए रुका तो स्वामी जी ने कहा कि- ” बेटा! बाबा से मेरा भी एक समाधान पूछे आना कि हमें क्यों सिद्धी नहीं मिल पा रही है ।”
जी बाबा जी कहकर वह जब आगे बढ़ा तो उसे एक किसान मिला उसने भी कहा कि-” मैं इतनी मेहनत करता हूं फिर भी खाने को नहीं मिलता मैं सुखी कैसे रह सकूंगा।”
वह लड़का बाबा जी के पास गया और अपनी समस्या को बाबा जी से कहा ।
बाबा जी ने कहा-” मांगों क्या मांगना है ।”
लड़के ने कहा -“मैं चार वरदान मांगना चाहता हूं बाबा जी । ”
लेकिन बाबा जी ने कहा -“बेटा! मैं तो तीन ही वरदान देता हूं । तुम एक वरदान छोड़कर चाहे जो भी तीन वरदान मांग लो ।”
लड़का सोचने लगा किसान कितना दुखी है। स्वामी जी की कितनी तपस्या के पश्चात भी फल नहीं मिला। सेठानी भी अपनी बेटी की चिंता में कितना दुखित रहती है और मां का हाल भी गरीबी से खराब है। अंत में उसने अपना वरदान नहीं मांगने का संकल्प लिया।
जब वह बाबा जी से सभी का समाधान पूछ कर लौटने लगा तो सबसे पहले किसान मिला।
किसान ने समाधान पूछा तो उसने कहा-” आपके खेत में जो पेड़ है उसी के नीचे सोने के घड़े पड़े हैं । उसे निकाल कर तुम सुखी हो सकते हो।”
किसान ने उसे रोक कर कुछ मजदूरों को बुलाकर खुदाई करवाया तो उसमें सोने के कई घड़े मिले ।
किसान ने कहा -” ले जाओ बेटा। तुमने मेरी बहुत सहायता की ।”
और उसे एक घड़ा सोने भरा दे दिया। आगे स्वामी जी मिले तो उनसे कहा-” ऐसा है स्वामी जी आपके सिर पर माणिक्य छुपी है जिसके कारण आपको भगवान के दर्शन नहीं हो पा रहा है।” ।
स्वामी जी ने सर झाड़ा तो उसमें से माणिक्य गिरा । स्वामी जी ने उसे लड़के को देकर कहा-” जाओ बेटा तुम इससे अपनी गरीबी दूर करो।”
आगे बढ़ा तो सेठानी से कहा-” माता जी ! जिसे देखकर आपकी बिटिया बोल देगी उसकी शादी उसी से होगी ।”
तब तक उसकी बेटी आ गई और लड़के को देखकर उसकी आवाज फूट पड़ी।
सेठानी लड़के को रोककर अपनी बिटिया की शादी लड़के से करके साथ ही दहेज भी खूब दिया । सब कुछ लेकर वह घर पहुंचा तो उसको देखकर मां बहुत खुश हुई।
सत्य ही कहा गया है कि यदि हम दूसरों की सहायता करते हैं तो हमारी समस्याएं सहज में हल हो जाती है क्योंकि कहावत है कि परहित सरस धर्म नहीं भाई।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )