कैसे ए आज़म कहूँ अपना भला | Ghazal
कैसे ए आज़म कहूँ अपना भला!
( Kaise E Aazam Kahun Apna Bhala )
कैसे ए आज़म कहूँ अपना भला!
जब यकीं में वो दग़ा करता भला
कहता है जब दोस्त हूँ सच्चा तेरा
क्यों दिखाता ग़ैर वो चेहरा भला
एक क़ातिल है वफ़ाओ का मेरी
शक्ल से ही जो मगर लगता भला
भूलने की कोशिशें कर ली तमाम
कैसे भूलूं उसका वो लम्हा भला
तोड़ आया हूँ भरा रिश्ता सितम
देखिए भी और क्या करता भला
तो यक़ीनन मैं चला आता मिलनें
जो इशारा मिलता भी उसका भला
छोड़ आज़म से गिले करने शिकवा
प्यार का हो अब सनम चर्चा भला