
किस्सा-दर-किस्सा
( Kissa-dar-kissa )
किस्सा-दर-किस्सा का मुझे साफ़ बयानी चाहिए
कुछ किताबें, कुछ रंजिशें और कुछ गुमानी चाहिए
ये भी बहोत खूब है, तुम्हे कुछ भी तो नहीं चाहिए
और एक में हूँ जिसको सफर भी सुहानी चाहिए
ज़िन्दगी गुजर सकती है बस एक भरम के साथ
मुहब्बत की राह में मुहब्बत रूहानी चाहिए
कोई आम सी नहीं है इस मुसाफिर की तिशनगी
प्यास बुझाने को शराब नहीं फ़क़त पानी चाहिए
मैंने गुज़ारा है ज़िन्दगी एक अहल-ए-अदब के साथ
अब रास्तों की पेच-ओ-ख़म भी मुझे रायेगानी चाहिए
बे-नक़ाब कर ‘अनंत’ को नीलाम यूँ सर-ए-आम
मगर मुझे खरीदने के लिए बेहतरीन ज़ुबानी चाहिए
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
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