Kalam ka pujari

कलम का पुजारी | Kalam ka pujari | Kavita

कलम का पुजारी

( Kalam ka pujari )

 

नजर उठाकर देखो जरा, पहचान लीजिए।
कलम का पुजारी हूं, जरा ध्यान दीजिए।

 

शब्दों की माला लेकर, भाव मोती पिरोता हूं।
कागज कलम लेकर, मैं सपनों में खोता हूं।

 

गीत गजल छंद मुक्तक, दोहा चौपाई गाउं।
मनमंदिर मांँ शारदे, पूजा कर दीप जलाऊं।

 

भाव भगीरथी उमड़े, महक जाए मन ये सारा‌।
काव्य की सरिता बहे, गंगा सी अविरल धारा।

 

ओज तेज कांति ले, सौम्य शब्द मनभावन से।
दिल तक दस्तक दे जाए, मधुर बोल सावन से।

 

झूम उठे महफिल सारी, जब मन मयूरा नाचता।
मोहक मुस्कान लबों पर, कविता कोई बांचता।

 

सारे सदन को मोह ले, कविता के बोल प्यारे।
मधुर तराने गीत मीठे, सुरीले अंदाज सारे।

 

शारदे की कृपा सारी, शब्दों का भंडार वो।
वाणी मुखर कर देती, जग किर्ती दातार वो।

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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