बाबुल | Babul kavita
बाबुल
( Babul )
बाबुल याद घणी सताये, बाबुल मन मेरा घबराये।
जिस आंगन में पली-बढ़ी, आंखों में उतर आए रे।
बाबुल मन मेरा घबराये, बाबुल मन मेरा घबराये।
मां की सीख हर्ष भर देती,घर संसार सुख कर देती।
आंगन की तुलसी तेरे, खुशियों से झोली भर लेती।
मेरा रूठना और मनाना, हर जिद पर भी वो मुस्काना।
लाड़ दुलार प्रेम सरिता वो, रह रहे याद दिलाये रे।
बाबुल मन मेरा घबराये,बाबुल मन मेरा घबराये।
भाई बहन की किलकारी, बाबुल सुनते बात हमारी।
खेल खिलौने सारे लाते, बड़े प्रेम से वो समझाते।
रूठ गए तो आकर मनाये, बाबुल हमको गले लगाये।
मीठी बातें वो प्यारी प्यारी, मन में उमंग जगाये रे।
बाबुल मन मेरा घबराये,बाबुल मन मेरा घबराये।
पग-पग पे रस्ता दिखाया, हर सपनों को पंख लगाया।
मुश्किल आई खड़े हो गए, जीवन में अनुराग जगाया।
खुशहाली के सिंधु बाबुल, बिटिया का जीवन महकाया।
घर की दीवारों में गूंजता, मधुर तराना मन भाए रे।
बाबुल मन मेरा घबराये, बाबुल मन मेरा घबराये।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )