Kamyabi ke safar me

कामयाबी के सफ़र में | Kamyabi ke Safar me

कामयाबी के सफ़र में

( Kamyabi ke safar me ) 

 

कामयाबी के सफ़र में धूप बड़ी काम आई,
छाँव मिल गई होती तो कब के सो गए होते!

अपनों से ठुकराना भी यथार्थ साबित हुआ,
नहीं तो अपनी कला से हम वंचित रह जाते!

चले जाएंगे हमें यूं तन्हा छोड़ कर एक दिन,
पता होता तो कैसे भी करके उन्हें मना लेते।

अब रात दिन अश्क बहते हैं मेरी आँखों से,
चाहकर भी इन आँसूओ को नहीं रोक पाते!

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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