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कर्जदार | Karjdar | Kavita

कर्जदार

( Karjdar)

 

धरती अंबर पर्वत नदियां सांसे हमने पाई है।
पेड़ पौधे मस्त बहारें सब दे रहे हमें दुहाई है।

 

मातपिता का कर्ज हम पर प्रेम बरसाते।
कर्जदार जन्मभूमि के पावन रिश्ते नाते।

 

देशभक्त मतवाले रहते जो अटल सीना तान।
कर्जदार हम उनके लुटा गए वतन पर जान।

 

रात दिन मेहनत करके खून पसीना बहाता है‌
कृषक खेती कर धरती पे ढेरों अन्न उगाता है।

 

हम ऋणी अन्नदाता के सब का पेट भरता है।
परोपकार बड़ा दुनिया में प्रभु कष्ट हरता है।

 

कर्जदार हम उनके भी शुभचिंतक हुए हमारे।
सुख-दुख में साथ निभाए दमके भाग्य सितारे।

 

गुरु मित्र समाज जग में हमे जीना सिखलाते।
कर्ज चुकाए मातृभूमि का जन्म जहां हम पाते।

 

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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