तुलसी विवाह

( Tulsi vivah )

 

भजन कर भाव भक्ति से, शालिगराम आए हैं।
सजा लो सारे मंडप को, प्रभु अभिराम आए हैं।

सजी तुलसी होकर तैयार, तुझे वृंदावन जाना है‌।
वृंदा कर सोलह श्रृंगार, द्वारिका नाथ रिझाना है।

ठाकुर जी हो रथ पे असवार, बाराती झूमते गाते।
बजे शहनाई तुलसी द्वार, चेहरे सबके मुस्काते।

ओढ़ी चुनरिया धरती ने, कुदरत सारी हरसाई।
मधुर पुरवाई मन मोहक, बहारें चंवर ले आई।

देवन हर्षित हो सारे अंबर से सुमन बरसाए हैं‌।
अप्सराएं सज धज के आई मंगल गीत गाए हैं

वैदिक मंत्र कर पूजन, परिणय ये बंधन सुहाना है।
शालिगराम संग तुलसी, विवाह में सबको आना है।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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