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नही है कर्ण जैसा कोई दानी | Karn par Kavita

नही है कर्ण जैसा कोई दानी

( Nahi hai karn jaisa koi dani )

 

जगत में कई है बलवान और महा-ज्ञानी,
लेकिन नही है इस कर्ण जैसा कोई दानी।
कोई पीने को ना देता एक गिलास पानी,
उसने तो दिया कवच कुण्डल महा-दानी।।

सूर्य-नारायण का वह ऐसा महाबली पुत्र,
कौरवों की सेना में दुर्योधन का ‌यह मित्र।
लड़ा यह धनुर्धारी ऐसे महाभारत रण में,
जीवन भर रहा दुःख एवं कष्टों के घेरें में।।

वह कर्ण था राजकुमारी कुन्ती ज्येष्ठ पुत्र,
स्वीकार ना पाई क्यों कि वह थी कंवारी।
ख़ुद अपने को दाग़ से बचाने के खातिर,
गंगानदी में बहा दिया पुत्र नही स्वीकारी।।

पूरी उम्रभर रहा अपमान की घूट पीकर,
शिक्षा नही दी गुरु ने सूत पुत्र समझकर।
द्रोपदी स्वयंवर में यही अपमानित हुआ,
फिर दुर्योधन के संग अधर्म से यह जुड़ा।।

सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर ने खाई ऐसी अनेंक मार,
तब भी न मानी ये महाबली अपनी हार।
किया दुर्योधन ने सम्मान आदर-सत्कार,
आज भी याद करता है कर्ण को संसार।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

 

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